सीईओ जाकिर हुसैन की पहल से अतिथिग्रह की ऊपरी मंजिल पर संभव हो सका है आना जाना, हाईकोर्ट में भी अब मजबूत पैरवी की उम्मीद
कैंट बोर्ड की संपत्ति से किराएदार कर रहा हर साल करोड़ों की कमाई लेकिन बोर्ड के खजाने को नहीं मिल रही एक पाई, हाईकोर्ट में बजाए पैरवी के आतिथिग्रह पर अवैध काविज शख्स के बन गए पार्टनर, पीपीई एक्ट में पंद्रह साल पहले किराएदार किया जा चुका है बेदखल
मेरठ। कैंट बोर्ड ने साल 2008 में अतिथिगृह को एक साल के लिए किराए पर दिया था। उस वक्त कैंट बोर्ड के सीईओ केसी गुप्ता थे। किराएदार को एक साल की एक्सटेंशन दी गयी। उसके बाद अतिथिगृह को बजाए खाली करने के किराएदार तत्कालीन उपाध्यक्ष की मदद से सिविल कोर्ट से स्टे ले आया। यहां यह गौरतलब है कि कैंट बोर्ड ने केवल नीचे का हिस्सा किराए पर दिया था। साल 2010 में अतिथिग्रह के किराएदार पर पीपीई एक्ट के तहत कार्रवाई की। किराएदार ने अपील की। उसकी अपील को सुनवाई करने वाले अधिकारी सीईओ ने खारिज कर कर उसको संपत्ति से बेदखल कर दिया। उसके बाद किरादार हाईकोर्ट पहुंच गया। वहां उसने बताया कि मौखिक रूप से कैंट बोर्ड प्रशासन ने यह संपत्ति उसको तीस साल के लिए किराए पर दी है। यही बात उसने सिविल कोर्ट में कही थी। हाईकोर्ट ने किराएदार को स्टे दे दिया। स्टे के बाद होना यह चाहिए था कि उसको वैकेट कराने के लिए कैंट बोर्ड के संबंधित लिपिक मजबूती से पैरवी करते, लेकिन जानकारों की मानें तो बजाए मजबूती से पैरवी करने के उल्टे उन्होंने कैंट बोर्ड के खिलाफ जाकर अतिथिग्रह में पार्टनरशिप कर ली। दरअसल पार्टनरशिप का ऑफर किराएदार की ओर से इस शर्त पर दिया गया कि अतिथग्रह के खिलाफ होईकोर्ट में पैरवी नहीं करोगा और हुआ भी वैसा ही। नतीजा यह हुआ कि आज तक अतिथग्रह किराएदार के कब्जे में है। कैंट बोर्ड के जिन दो कर्मचारियों के नाम किरादार के पार्टनरों के रूप में सामने आए हैं उनमें से राजीव श्रीवास्तव की मौत हो चुकी है, जबकि दूसरे रिटायर्ड हो चुके हैं। इसी के चलते हाईकोर्ट में भी अतिथिग्रह की फाइल दूसरी फाइलों के ढेर में नीचे दबी रही। यहां यह भी गौरतबल है कि अतिथि गृह के ऊपर वाले हिस्से पर कैंट बोर्ड का ही कब्जा था, लेकिन ऊपरी हिस्से पर जाने का रास्ता नहीं था, जो दो दिन पहले सीईओ की पहल पर बनाया गया, ताकि बोर्ड के स्टाफ की वहां आवाजाही हो सके या फिर उस हिस्से से कमाई का कोई साधन बन सके।