फौजी अफसरों की कालोनी मल्होत्रा एन्कलेव के समीप रोड साइड पर तीन अवैध दुकानों का कैंट बोर्ड का कौन कर्मचारी दोषी
मेरठ। ना खाता ना बही जो कैंट बोर्ड करे वो सही! मामला सरकुलर रोड पर अवैध रूप से बनवा दी गई तीन दुकानों का है। इन तीन दुकानों में से एक में फल व सब्जी, दूसरी में ढावा और तीसरी में गैराज चल रहा है। अवैध इसलिए कहा जा रहा है, क्याेंकि रोड साइड पर कहीं भी यदि कामर्शियल यूज से अवैध निर्माण होता है तो वो गैर कानूनी हैं और कैंट के इलाके में जहां फौजी अफसरों की कालोनी मलहोत्रा एन्कलेव है, वहां तो और भी गलत है, इससे कृत्य से फौजी अफसरों की कालोनी की गोपनीयता के भंग होने का खतरा है। जहां ढावा बनवाया गया है, वहां आने जाने वाले कौन है, उनकी मंशा यहां आने की क्या है, यह कोई नहीं जानता। कैंट एक्ट की यदि बात करें तो जिस प्रकार से ये दुकानें बनवा दी गयी है, वैसा कोई प्रावधान नहीं है तथा रोड साइड पर दुकानें नहीं बनवायी जा सकीं। कैंट बोर्ड की यह कारगुजारी बोर्ड में तैनार रहे सीईओ ज्योति कुमार के कार्यकाल की है। ज्योति कुमार की ऐसी क्या मजबूरी या दवाब था जो उन्होंने अवैध रूप से बनवा दी गई, इन तीन दुकानों के मामले में रेवेन्यू सेक्शन के जो भी इसमें लिप्त थे, उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की। उस दौरान ज्योति कुमार सीईओ थे और अध्यक्ष ब्रिगेडियर निखिल देश पांडे थे और रेवेन्यू सेक्शन का भी स्टाफ वहीं था जो इस वक्त है। अपुष्ट सूत्रों की माने तो इन दुकानों को बनवाने में मोटी रकम का खेल हुआ है।
ऐसे किया गया घालमेल
इन तीन दुकानों के अवैध रूप से बनवाने के पीछे सबसे पहला काम तहबाजारी के ठेकेदार से इनकी 25 रुपए वाली पर्ची कटवाई गयी, जबकि 25 रुपए वाली पर्ची केवल ठेलों या फड की ही काटी जा सकती है, जहां पूरा पक्का स्ट्रकचर बना हो वहां यह पर्ची नहीं काटी जा सकती, जिस प्रकार का निर्माण कराया गया है, वहां केवल और केवल ध्वस्तीकरण किया जाता है। यदि दुकानों का निर्माण करा भी दिया गया, तो यह मामला पहले बोर्ड की बैठक में रखा जाता, बोर्ड में यह प्रपोजल पास होता, उसके बाद कमांड को भेजा जाता, जब वहां से सहमति आ जाती, उसके बाद यहां खुली नीलामी करायी जाती, जो भी अधिकतम बोली लगाता, उसको जगह अलाट की जाती, लेकिन बोर्ड के अफसरों ने इस प्रकार की किसी भी प्रक्रिया का पालन नहीं किया। सबसे बड़ी हैरानी तत्कालीन सीईओ ज्याेती कुमार की चुप्पी पर है, ना जाने क्यों और किस प्रेशर में उन्हाेंने भी जो कैंट एक्ट में जो नियम है, उसका भी पालन नहीं किया। जितनी जगह 20/40 की ये दुकानें अवैध रूप से बनवा दी गयी हैं, यदि ऐसी दुकानें नियमानुसार बनवाई होती तो एक ही दुकान से कम से कम डेढ़ लाख का रेवेन्यू एक ही दुकान से आता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। बोर्ड के खजाने के साथ भी नाइंसाफी की गई। जानकारों की मानें तो इन दुकानों से प्रतिमाह करीब 33 हजार बतौर किराए के तौर पर लिए जाते हैं, लेकिन इस रकम की कोई रसीद नहीं काटी जाती, बड़ा सवाल फिर यह रकम किसी की जेब में जा रही है। ऐसी एक दो नहीं पूरे कैंट में कई कारगुजारियां हैं, जनवाणी नियमित रूप से जिनका खुलासा करेगा। यहां यह भी स्पष्ट कर दें जब इस संबंध में सीईओ जाकिर हुसैन से संपर्क किया गया तो बात नहीं हो सकी, लेकिन उनके सीयूजी नंबर के वाटसअप पर मैसेज कर दिया गया, जबकि कैंट बोर्ड के अधिकृत प्रवक्ता जयपाल तोमर से इस संबंध में सवाल किया गया तो उनका कहना था कि जब दुकानें बनीं उसी समय पूछते, बाद में उन्होंने कहा कि मेरा वर्जन नो कमेंट है। रेवेन्यू हैड जोन से भी संपर्क का प्रयास किया, लेकिन उनका मोबाइल नंबर आउट ऑफ रेंज जाता रहा।