पुतिन की यात्रा भारत पर पश्चिमी दबाव आर्थिक झटके, आर्थिक मुद्दाें पर कुछ हासिल नहीं, ट्रंप व यूरोप बढ़ाएंगे अब प्रेशर
नई दिल्ली। रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन की भारत यात्रा की कीमत चुकाने की नौबत आ गई है। पुतिन की यात्रा के चलते भारत पर अब ऊर्जा लागत का बोझ बढ़ना तय माना जा रहाहे। यूरोपीय सैंक्शंस और अमेरिकी 25% टैरिफ के कारण अक्टूबर 2025 में रूसी तेल आयात 38% YoY कम। कुल व्यापार में तेल का 60 अरब डॉलर का हिस्सा अब खतरे में, जिससे भारत की ऊर्जा लागत बढ़ सकती है। व्यापार असंतुलन की आशंकाओं को भी खारिज नहीं किया जा सकता। $69 अरब व्यापार में भारत का निर्यात मात्र $5 अरब। रूस को फार्मा, मशीनरी और कृषि उत्पाद बेचने की कोशिशें रुकी हुईं। GTRI के अनुसार, “यह असंतुलन भारत की बैरगेनिंग पावर कम करता है।”
ट्रंप व यूरोपीय प्रेशर
पुतिन की यात्रा का सबसे बड़ा साइड इफैक्ट ट्रंप प्रशासन व यूरोपीय संघ से आ रहा है। ट्रंप प्रशासन के CAATSA सैंक्शंस का खतरा, जो रूसी हथियार खरीद पर रोक लगा सकता है। यात्रा से ठीक पहले यूके, जर्मनी और फ्रांस के राजदूतों का आर्टिकल “रूस शांति के प्रति गंभीर नहीं” भारत को चेतावनी था। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की चुप्पी तो डिप्लोमेसी की जीत, लेकिन वैश्विक छवि पर असर।
रक्षा सौदों पर भारत के हाथ खली
इसके अलावा रक्षा सौदों में देरी की भी आशंका जतायी जा रही है। विमान, ड्रोन और मिसाइल डील्स पर कोई ठोस घोषणा नहीं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और रूसी समकक्ष की बैठक बेनतीजा रही। इसको लेकर कांग्रेस ने कहा है कि “इंदिरा-नेहरू युग की सोवियत दोस्ती का यह निरंतरता है, लेकिन अमेरिकी टैरिफ से अर्थव्यवस्था को नुकसान?” WCC और अन्य संगठनों ने सैंक्शंस के प्रभाव पर चिंता जताई।