बैंक फुट पर सरकार, विपक्ष ने खेल दिए कच्चे चिट्ठे, सदन में सत्ताधारियों ने करा ली फजीहत
नई दिल्ली। वंदे मातरम पर विपक्ष खासतौर से कांग्रेस को घेरने के भाजपा के मंसूबे लोकसभा व राज्यसभा में धरे के धरे रहे गए। इस मुद्दे पर बहस कराकर सत्ताधारियो ने अपनी बुरी फजीहत करा ली। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी व शिवसेना ने संघ और हिन्दू महासभा के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान किए गए कृत्यों को जब गिनाना शुरू किया तो सत्ताधारी बैकफुट पर आ गए और बंगले झांकने लगे। नाम न छापे जाने के शर्त पर तमाम सीनियर भाजपा नेता कह रहे हैं कि बंदे मातरम पर बहस इस मौके पर ठीक नहीं थी। आप के संजय सिंह जब बोलना शुरू किया तो सत्ताधारियों में सन्नाटा छा गया। शिवसेना (UBT) के आनंद दुबे ने तंज कसा, “नेहरू PM मोदी के जेहन से कभी नहीं निकलते। चाहे वंदे मातरम हो या महंगाई, हमेशा नेहरू का जिक्र।
BJP को बताया ‘राष्ट्रविवादी’ और ‘बंगाल-विरोधी’
लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में 10 घंटे की इस चर्चा में विपक्ष ने इतिहास तोड़-मरोड़ने का आरोप लगाते हुए BJP को ‘राष्ट्रविवादी’ और ‘बंगाल-विरोधी’ करार दिया, जिससे सदन में हंगामा मच गया। संसद के विंटर सेशन में ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ पर आयोजित बहस ने एक बार फिर राजनीतिक तापमान को हाई कर दिया। भाजपा ने राष्ट्रगान के समकक्ष राष्ट्रीय गीत को श्रद्धांजलि देने के नाम पर कांग्रेस और नेहरू को निशाने पर लिया, लेकिन विपक्ष ने उल्टा हमला बोलते हुए सत्ताधारियों को ही फजीहत करा दी।
पीएम ने की शुरूआत
चर्चा की शुरुआत लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की, जिन्होंने ‘वंदे मातरम’ को स्वतंत्रता संग्राम का ‘चेतना मंत्र’ बताते हुए कांग्रेस पर तीखा प्रहार किया। पीएम ने 1937 के विवाद का जिक्र करते हुए कहा कि मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग के विरोध के बाद नेहरू ने गीत की समीक्षा की मांग की थी, जो राष्ट्रगान के साथ अन्याय था। उन्होंने जोर देकर कहा, “वंदे मातरम ने पूरब से पश्चिम तक हर भारतीय का संकल्प बनाया, लेकिन कुछ शक्तियों ने इसे कमजोर करने की कोशिश की।” भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने भी विपक्ष पर कटाक्ष किया, “जिन्ना को वंदे मातरम से दिक्कत थी, और जिन्ना के मुन्ना को भी दिक्कत है। हमें एनर्जी मिलती है, इन्हें एलर्जी।”
BJP ‘राष्ट्रवादी नहीं, राष्ट्रविवादी’
लेकिन विपक्ष ने तुरंत मोर्चा संभाल लिया। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा में पलटवार किया, “कांग्रेस ने ही स्वतंत्रता संग्राम में ‘वंदे मातरम’ को नारा बनाया। आपका (BJP) इतिहास रहा है कि आप हमेशा देशभक्ति गीतों के खिलाफ रहे।” वरिष्ठ कांग्रेसी जयराम रमेश ने साफ कहा, “पूरी बहस का मकसद नेहरू को बदनाम करना है। BJP इतिहास को तोड़-मरोड़ रही है।” प्रियंका गांधी वाड्रा ने लोकसभा में BJP पर सीधा हमला बोला, “BJP चुनाव के लिए राजनीति करती है, हम देश के लिए। वंदे मातरम 150 साल से आत्मा का हिस्सा है, तो अचानक इस पर बहस क्यों?” समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने तो BJP को ‘राष्ट्रवादी नहीं, राष्ट्रविवादी’ बता दिया। उन्होंने कहा, “वंदे मातरम को निभाने का भाव चाहिए, न कि राजनीतिक हथियार बनाना। BJP सब कुछ अपना बनाने पर तुली है। बताओ, BJP में कितने सोशलिस्ट और सेक्युलर बचे हैं?”
“BJP ने न बंगाल को समझा, न देश को
विपक्ष का हमला यहीं नहीं रुका। शिवसेना (UBT) के आनंद दुबे ने तंज कसा, “नेहरू PM मोदी के जेहन से कभी नहीं निकलते। चाहे वंदे मातरम हो या महंगाई, हमेशा नेहरू का जिक्र।” कांग्रेस के गौरव गोगोई ने कहा, “BJP ने न बंगाल को समझा, न देश को।” पश्चिम बंगाल की CM ममता बनर्जी ने बाहर से BJP को घेरा, “ये बंगला-विरोधी हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस, रवींद्रनाथ टैगोर, राजा राममोहन राय जैसे महान बंगाली नेताओं की अनदेखी क्यों? अगर इनकी कद्र नहीं, तो किसकी?”
खुद की छवि खराब हुई
यह बहस न सिर्फ ‘वंदे मातरम’ की ऐतिहासिक विरासत पर रोशनी डालती है—जो बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1882 में रचित ‘आनंदमठ’ उपन्यास से निकला—बल्कि वर्तमान राजनीति के आईने की तरह काम करती है। विपक्ष का दावा है कि BJP ने नेहरू-विरोधी एजेंडे से फायदा उठाने की कोशिश की, लेकिन उल्टा खुद की छवि खराब हुई। क्या यह विवाद सेशन के आखिर तक चलेगा? फिलहाल, सदन की गूंज ‘वंदे मातरम’ से ज्यादा बहस की है।