कैंट बोर्ड: सेक्शन-44 किया दफन, छावनी अधिनियम की धारा-44 में स्पष्ट प्रावधान है कि गोपनीय विषयों को छोड़कर बोर्ड की बैठकों के ऐजेंडा व बैठकों के कार्यवृत्त यानि मिनिटस को सार्वजनिक किया जाए, उसको संबंधित कैंट बोर्ड वेबसाइट पर भी अपलोड करें, मेरठ कैंट बोर्ड में छावनी अधिनियम की धारा-44 के तहत बाेर्ड बैठकों की तमाम जानकारियां सार्वजनिक करने का चलन 2015 से रहा है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस परंपरा को खत्म कर दिया है। बोर्ड बैठकों के ऐजेंडा व लिए जाने वाले निर्णयाें को वेबसाइट पर अपलोड करना तो दूर, नौबत यहां तक आ गयी है कि निहितार्थ के चलते अनेक विषयाें को ऐजेंडे में शामिल ही नहीं किया जाता। इन निहितार्थ पूरे करने को कैंट बोर्ड के अफसर हो या सदस्य तमाम हथकंड़े अपनाते हैं। बोर्ड की बैठक खत्म होने के बाद यह सारा खेल आमतौर पर बोर्ड बैठक पार्ट-2 के तौर पर खेला जाता है। इसके लिए सप्लीमेंट्री ऐजेंडा का सहारा लिया जाता है। जानकारों की मानें तो जिन मामलों में तगड़ा लेनदेन होता है उसमें जरूरी न होते हुए भी सरकुलर ऐजेंडा से निहितार्थ साध लिए जाते हैं। आमतौर पर ऐसी कारगुजारियां तभी अंजाम दी जाती हैं जब भारत सरकार के बंगलों में गलत तरीके से नक्शे पास करना, ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने, भारत सरकार के बंगले में किए गए अवैध निर्माण को कानूनी जामा पहनाना हो, ट्रेड लाइसेंस दिया जाना हो आदि। बात ज्यादा पुरानी नहीं है। जब विगत 20 अगस्त को हुई कैंट बोर्ड की बैठक को लेकर भी इसी प्रकार की कारगुजारियों की सुगबुगाहट सुनायी दी। जिसमें नक्शों व मुटेशन संबंधित मामलों में अपने निहितार्थ के लिए बाेर्ड बैठक के सदन से उठ जाने के बाद कारगुजारियों को अंजाम दिया गया। इसमें पूरा बोर्ड शामिल रहा। विधि विशेषज्ञ कैंट बोर्ड प्रशासन की इन कारगुजारियों को स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा मानते हैं। जिन लोगों के टैक्स के पैसे से अफसरों को सेलरी दी जाती है, वो सार्वजनिक विषयों पर क्या कर रहे हैं, यह जानने का हक छावनी अधिनियम की धारा-44 देती है, जिसका अब पालन नहीं किया जा रहा। तानाशाह रवैया अपनाया जा रहा है।