मेरठ। एक वैसे ही नौचंदी के सैंट्रल मार्केट मेन रोड पहले से ही छोटी अब रही सही कसर इस मेनरोड की सड़क बेचकर पूरी कर दी है। सड़क बेचने का यह शर्मसार करने का संगठित गिरोह की तर्ज पर किया गया। इसमें ठेकेदार, पुलिस, व्यापारी और आवास विकास के अफसर शामिल हैं। पहले तो आपको यह बता दें कि पूरा सैन्ट्रल मार्केट ही अवैध है। यहां की दुकानें व तमाम शोरूम में मकानों दुकानों में तब्दील कर बनाए गए हैं। इसके लिए जितने कसूरवार गृहस्वामी जिम्मेदार हैं, उससे ज्यादा आवास विकास के अफसर कसूरवार हैं। जब मकानों को दुकानों तब्दील किया जा रहा होता है, उस आवास विकास के अधिकारी बजाए सीधे मसलन ध्वस्तीकरण सरीखी कार्रवाई के बजाए नोटिस-नोटिस का खेल खेलते है, जब दुकान व शोरूम बनकर तैयार हो जाते, उसके बाद मकान को दुकान में तब्दील करने वाले कोर्ट से यथास्थिति के आर्डर हासिल कर लेते हैं। कोर्ट का रास्ता दिखाने का काम भी आवास विकास के अफसर ही करते हैं।
मकानों काे दुकानों में बदलने से ही मुसीबत
पुराने मकानों को दुकान व शोरूम में तब्दील किए जाने की वजह से सैट्रल मार्केट में मुसीबत खड़ी हुई है। जितनी भी दुकानें व शोरूम हैं, इनके यहां आने वाले ग्राहक आमतौर पर कारों से आते हैं। बाइक या स्कूटी पर आने वाले ग्राहकों की संख्या कम होती है। ज्यादातर कारों से ही आते हैं। एक तो ग्राहकों की गाड़िया और रही सही कसर दुकानों को सामान सड़क के दोनों रखने वाले व्यापारी पूरी कर देते हैं। पूरा सैंट्रल मार्केट इस तरह के व्यापारियों से गुलजार है, जो दुकान का सामान सड़कों पर सजाते हैं। आमतौर ऐसा दीपावली या अन्य मौकों पर किया जाता है, लेकिन से सैंट्रल मार्केट मों 12 महीने तीसौ दिन ऐसा ही मंजर नजर आएगा।
सड़कें बेच डालीं छोटे से लालच में
सैंट्रल मार्केट के जो व्यापारी अपना सामान सड़क पर नहीं सजाते हं, वो दुकान के सामने चांट पकौड़ी या कुछश्र अन्य चीजों का काम करने वालों को जगह दे देते हैं। इस प्रकार के ठेले व फड़ आदि लगाने वालों को उस व्यापारी को दो सौ से पांच सौ तक देना पड़ता है जो दुकान के आगे की जगह देता है। इस रकम के तीन हिस्से होते हैं। एक तो इलाके की पुलिस चौकी के स्टाफ का, दूसरा हिस्सा दुकानदार का, तीसरा हिस्सा नगर निगम के तहबाजारी स्टाफ का और चौथा हिस्सा ठेकेदार को जो पूरी सेटिंग बैठता है। हालांकि कई दुकानदार ऐसे भी जो किसी को भी हिस्सा नहीं देते और पूरी खुद ही डकारते हैं। लेकिन इस प्रकार के कृत्यों से बाजार की हालत खराब हो जाती है। वहां से गाड़ी लेकर कई बार तो निकला भी दुश्वार होता है। लेकिन इसकी चिंता दुकानदार नहीं करते।
एक और बड़ी मुसीबत
जब से गढ़ रोड पर पुलिया का काम शुरू किया गया है रोडवजे की तमाम बसें सैंट्रल मार्केट से होकर गुजरती। ऐसा नहीं कि इन बसों के आने जाने का कोई टाइम फिक्स होता है। रोडवज की बसें इस रूट से चौबीस घंटे गुजरा करती है। इनकी वजह से भी सैट्रल मार्केट का बुरा हाल है। बाजार में खड़ी हुई मुसीबत से ना तो व्यापारी नेताओं और ना ही पुलिस को कोई सरोकार है। उन्हें तो बस सड़क बेचे जाने के बाद अपने हिस्से से सरोकार होता है।
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