आज भी रहस्य है रूप कुंड, देहरादून. वो लोग कौन थे जिन्होंने हजारों बेहद खूबसूरत महिलाओं को यूं मार डाला। हजारों साल से आज भी यह रहस्य बना हुआ है. दुनिया भर के वैज्ञानिक इसको लेकर माथा पच्ची कर चुके हैं, लेकिन उत्तराखंड में मौजूद रूप कुंड आज भी दुनिया के लिए अनबूझ पहेली है.
साल 1942 में यहां पर ब्रिटिश के फॉरेस्ट चार गार्ड को सैकड़ों नर कंकाल मिले थे। झील पूरी तरह मानवों के कंकाल और हड्डियों से भरी थी। कंकालों को लेकर किए गए शुरुआती अध्ययनों से पता चला है कि यहां मरने वाले अधिकतर लोगों की ऊंचाई सामान्य से अधिक थी. इनमें से ज़्यादातर मध्यम आयु वर्ग के थे जिनकी उम्र 30- 35 के बीच रही होगी. इनमें भी 90 फीसदी महिलाएं हैं. पांच साल तक चले एक हालिया अध्ययन में कहा गया है कि ये सभी कयास शायद सच नहीं हैं. इस अध्ययन में भारत समेत जर्मनी और अमेरिका के 16 संस्थानों के लेखक शामिल रहे हैं. वैज्ञानिकों ने जेनेटिक रूप से और कार्बन डेटिंग के आधार पर झील में मिले इंसानी अवशेषों का अध्ययन किया. इनमें अवशेष कुछ 1,200 साल पहले के हैं. मरे हुए लोग जेनेटिक रूप से अलग-अलग हैं और उनकी मौतों के बीच में 1,000 साल तक का अंतर है. अध्ययन की मुख्य लेखिका ईडेओइन हार्ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी की छात्र हैं :- वे कहती हैं, “इससे वरे थ्योरी ख़ारिज हो गईं, जिनमें कहा गया था कि किसी एक तूफ़ान या आपदा में ये सभी मौतें हुई हैं.” “अभी भी यह साफ नहीं है कि रूपकुंड झील में आख़िर क्या हुआ था. उस दिन क्या आसमान से बिजली के रूप में मौत बरसी थी. लेकिन, हम यह बात ज़रूर कह सकते हैं कि ये सभी मौतें किसी एक घटना में नहीं हुई हैं.” नौवीं सदी के दौरान किसी अचानक आई किसी आपदा के दौरान मारे गए. रूपकुंड झील समुद्रतल से क़रीब 16,500 फीट यानी 5,029 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है. ये झील हिमालय की तीन चोटियों, जिन्हें त्रिशूल जैसी दिखने के कारण त्रिशूल के नाम से जाना जाता है, के बीच स्थित है. एक अन्य थ्योरी के मुताबिक़, इनमें से कुछ कंकाल भारतीय सैनिकों के हैं जो कि 1841 में तिब्बत पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रहे थे और जिन्हें हराकर भगा दिया गया था. इनमें से अनेक सैनिकों को हिमालय की पहाड़ियों से होते हुए वापस लौटना पड़ा और रास्ते में उनकी मौत हो गई. लेकिन ज्यादातर वैज्ञानिक इस थ्योरी को नहीं मानते. त्रिशूल को भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में गिना जाता है जो कि उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित हैं. साल के ज़्यादातर वक़्त तक इस झील का पानी जमा रहता है, लेकिन मौसम के हिसाब से यह झील आकार में घटती – बढ़ती रहती है. जब झील पर जमी बर्फ़ पिघल जाती है तब ये इंसानी कंकाल दिखाई देने लगते हैं. कई बार तो इन हड्डियों के साथ पूरे इंसानी अंग भी होते हैं जैसे कि शरीर को अच्छी तरह से संरक्षित किया गया हो. ये बड़ी संख्या में हैं. इतने सारे कंकालों और हड्डियों को देख ऐसा आभास होता था कि शायद पहले यहां पर जरूर कुछ न कुछ बहुत बुरा हुआ था. कुछ वैज्ञानिक थ्योरियों में कहा गया है कि कंकाल जापानी सैनिकों के होंगे, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में ब्रिटेन पर आक्रमण करने के लिए हिमालय के रास्ते घुसते वक्त मर गए. उस वक्त जापानी आक्रमण के भय से ब्रिटिश सरकार ने फौरन इन नर कंकालों की जांच के लिए एक वैज्ञानिकों की टीम को बुलाया. जांच के बाद पता चला कि ये कंकाल जापानी सैनिकों के नहीं थे, बल्कि ये नर कंकाल तो और भी ज्यादा पुराने हैं. इसके बाद समय समय पर इन कंकालों का परीक्षण होता रहा। इन परीक्षणों के आधार पर वैज्ञानिकों के मत अलग-अलग सामने निकलकर आए. कई वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्षों पहले यहां पर कई लोगों की मृत्यु हिमस्खलन के चलते हुई तो दूसरे वैज्ञानिकों का कहना है कि इन लोगों की मौत किसी महामारी के कारण हुई. रूपकुंड झील में नर कंकाल क्यों है? और कैसे हैं? इस पर वैज्ञानिकों का मत एकसमान नहीं है. हालांकि 2004 में हुए एक अध्ययन ने रूपकुंड झील से जुड़े कई चौंकाने वाले खुलासे कि. इस अध्ययन के जरिए यह पता चला कि ये कंकाल 12वीं से 15वीं सदी के बीच के थे. डीएनए जांच के बाद कई नई चीजें सामने निकलकर आईं. यह भी पता चला कि इन कंकालों का संबंध अलग-अलग भौगोलिक जगहों से था. अंत में वैज्ञानिकों ने बताया कि काफी समय पहले इन लोगों की मृत्यु किसी भारी गेंद जैसे आकार की चीजों का सिर पे गिरने से हुई थी. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हिमालय पर्वत पर रहने वाली महिलाओं के एक प्रसिद्ध लोकगीत में एक माता का वर्णन आता है. लोकगीत के मुताबिक ये देवी माता बाहर से आए लोगों पर गुस्सा करती थीं, जो यहां आकर पहाड़ की सुंदरता में खलल डालते थे। इसी गुस्से में उन्होंने भारी भरकम ओलों की बारिश करवाई, जिसके कारण कई लोगों की जानें गईं थी। गौरतलब बात है कि 2004 में हुए रिसर्च में यही बात सामने निकल कर आई थी कि अचानक हुई भयंकर ओलावृष्टि से इन लोगों की जानें गई होंगी. वहीं आज भी इस रूपकुंड झील के कई रहस्य झील के भीतर ही दफन हैं. झील में प्रवेश करने पर सख्त प्रतिबंध है। लोगों का कहना है कि यहां पर अक्सर कई सारी रहस्यमय घटनाएं होती हैं.