असली खतरा तो परिवार से है

असली खतरा तो परिवार से है
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असली खतरा तो परिवार से है, मतदान में चंद घंटे शेष रह गए हैं, किसी भी कीमत पर भाजपा महापौर की चुनावी महाभारत को जीत लेना चाहती है, इसके लिए विराेधियों से निपटने के लिए हर पैतरा और हथियार का इस्तेमाल किया जा रहा है, राजनीतिक अज्ञातवास काट रहे अपनो द्वारा ठकुरा दिए गए दूसरे दलों को गले लगाने से भी लास्ट स्टेज पर आकर अब गुरेज नहीं, लेकिन जानकारों की मानें तो भाजपा के लिए चुनावी महासमर में बाहर से ज्यादा बड़ा खतरा तो परिवार यानि भीतर से है और इस सारे फसाद या संभावित नुकसार की  असली वजह मेरठ नगर निगम के  तमाम वार्डों में टिकट वितरण को माना जा रहा है, ऐसे अनेक वार्ड हैं जहां या तो नए चेहरे उतार दिए गए हैं,  जो अरसे से पार्टी पार्टी का झंड़ा उठाए घूम रहे थे उनको कंसीडर न कर सिफारिशी या फिर करीबियों के अच्छे दिन लाने की कोशिश की गई. इसका नतीजा यह हुआ कि जो डिजर्व करते थे और टिकट नहीं मिला, उन्होंने मैदान में उतरकर भाजपा के अधिकृत के खिलाफ ताल ठोक दी, कई को तो कैंट विधायक अमित अग्रवाल ने मान मुन्नवल कर मना लिया, लेकिन कुछ ऐसे थे, जो मैदान में डटे रहे, चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद कुछ को बाहर का रास्ता भी दिखा दिया, लेकिन इससे भी बड़ी खबर परिवार से है, वो ऐसे कि कई ऐसे वार्ड हैं जहां वार्ड के अध्यक्ष और दूसरे पदाधिकारी और कार्यकर्ता  बजाए भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी के चुनाव में लड़ने के दूसरे दलों के प्रत्याशी काे चुनाव लड़ा रहे हैं. सबसे हैरानी की बात तो यह है कि इस बात से भाजपा का चुनावी मैनेजमेंट भी पूरी तरह से बेखबर था, यहां तक की पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी भी इस बात से अंजान थे कि असली खतरा भीतर है, बाहर नहीं. सुनने में आया है कि इसकी भनक दो दिन पहले ही लग सकी, जिसके चलते यह भी माना जा रहा है कि नुकसान बड़ा हो सकता है, निवर्तमान बोर्ड में जितने पार्षद भाजपा के हैं, आशंका है कि इस बार उनकी संख्या में कमी आ जाए, लेकिन इतना तय है कि इस बार बड़ी संख्या में निर्दलीय निगम पहुंचने के संकेत मिल रहे हैं, यदि ऐसा हुआ तो इसके लिए वो जिम्मेदार होंगे जिन्होंने टिकट बांटे हैं या टिकट बंटवारे में जिनकी चली है, यह केवल भाजपा ही नहीं सभी दलों में ऐसा है. लेकिन अभी बात भाजपा की. जब इस बात का खुलासा हुआ कि वार्ड में संगठन के कुछ कार्यकर्ता भाजपा के अधिकृत के बजाए दूसरे प्रत्याशी के लिए पसीना बहा रहे हैं तो पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसके बाद एक प्रदेश पदाधिकारी ने एक-एक रूठे हुए को फोन काल करने शुरू किए, तमाम वार्ड की लिस्ट तैयारी की गयीं, भाजपा के टिकट पर जो चुनाव में ताल ठोक रहे हैं उन्हें जब पता चला कि उनके वार्ड में कार्यकर्ता उनका नहीं किसी अन्य को चुनाव लड़ा रहे हैं तो स्यापा फैल गया. डेमेज कंट्रोल की बात शुरू हो गयीं. डेमेज कंट्रोल कितना हुआ है यह तो 13 मई को ही पता चल सकेगा। वैसे ज्यादातर वार्डों में ऐसे ही हालात बताए जा रहे हैं.

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