मेरठ। कमांड से चौबीस साल पुरानी अपील खारिज होने के बाद भी कैंट बोर्ड की बैठक में बोर्ड के मनोनीत सदस्य डा. सतीश के अवैध निर्माण का आइटम नहीं लगाया गया। माना जा रहा है कि यह सब कुछ निहित कारणों के चलते किया गया है। दरअसल प्रयास है कि किसी तरह से मनोनीत सदस्य को कोर्ट से स्टे दिला दिया जाए। एक बार स्टे यदि मिल गया तो फिर इस मामले को लंबा खींचा जा सकता है। दरअसल यह पूरा मामला डा. सतीश शर्मा के कथित गलत नोमिनेशन को लेकर चल रहा है और सरदार नरेन्द्र नागपाल की आपत्ति से जुड़ा है। बकौल नरेन्द्र नागपाल यह मनोनय ही गलत हुआ है। वह यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में लेकर गए। 24 जनवरी 2024 को वह इस मामले को लेकर गए। सेक्शन 34 (4) के तहत इस मामले में 90 दिन की मोहलत दी गई ताकि वो चौबीस साल से जो कमांड में लंबित है उसकी सुनवाई करा सकें। इसके बाद डा. सतीश शर्मा कमांड में गए। लेकिन कमांड के अपील अधिकारी ने डा. सतीश शर्मा ने अपील को खारिज कर दिया और दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर एक तरह से मोहर लगा दी। कमांड से अपील खारिज होने के बाद होना यह चाहिए था कि वो आइम बोर्ड की पिछली बैठक में लगाया जाता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। यही पर कैंट बोर्ड प्रशासन की मंशा पर सवाल खड़ा होता है।
यहां सबसे महत्वपूर्ण बात ह है कि सरदार नरेन्द्र सिंह नागपाल इस मामले को हाईकोर्ट की डबल बैंच में लेकर गए। डबल बैंच 5 मार्च को डा. सतीश शर्मा के वकील ने कहा कि 10 मार्च तक इस मामले का हर हाल में निस्तारण कर दिया जाएगा क्यों कि अपील अधिकारी के पास इस मामले में 10 मार्च की तिथि लगी हुई है। लेकिन अब तो अपीलीय अधिकारी ने भी जब उस मामले को खारिज कर दिया है तो यह आइटम बोर्ड बैठक में लगाया जाना था। जानकारों की मानें तो इस मामले को लेकर अब स्टे का प्रयास है, दरअसल इन दिनों कोर्ट में ग्रीष्मकालीन अवकाश चल रहे हैं, जैसे ही कोर्ट खुलता है कोर्ट से स्टे हासिल कर कैंट बोर्ड के मनोनीत पार्षद स्टे लेकर राहत हासिल कर सकें। सरदार नरेन्द्र सिंह नागपाल का कहना है कि ऐसे ना जाने कितने मामले हैं जो सालों से अटके पड़े हैं। चौबीस साल पहले इस मामले में भी इसलिए सुनवाई हो सकी क्योंकि कोर्ट में लगातार पैरवी जारी रही थी। अन्यथा यह मामला भी दबा दिया जाता। उनका यह भी कहना है कि इस मामले को कैंट बोर्ड की विगत बोर्ड में ना लगाया जाना कैंट बोर्ड प्रशासन की ओर से डा. सतीश शर्मा को लगातार मौका दिए जाने सरीखा है, जबकि होना यह था कि यह आइटम बोर्ड की बैठक में लगाया जाना चाहिए था। और आइटम को बोर्ड की बैठक में ना लगाने के भी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।


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