भये प्रगट कृपाला दीनदयाला

kabir Sharma
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देश भर में रामनवमी की धूम, अयाेध्या में भारी संख्या में पहुंचे श्रद्धाजुजन, भारत ही नहीं पाकिस्तान व दूसरे देशों में भी रामनवमी की धूम

धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवान राम का जन्म त्रेतायुग में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था, जिसे रामनवमी के रूप में मनाया जाता है और यह तिथि हर साल मार्च या अप्रैल के महीने में आती है। हालांकि, उनके जन्म की सटीक वैज्ञानिक तिथि के बारे में विभिन्न मत और शोध मौजूद हैं, जिनमें एक मत के अनुसार 10 जनवरी, 5114 ईसा पूर्व भी बताया गया है। 

प्रभु राम की एआई से बनायी गयी तस्वीर जिसको बताया जाता है कि भगवान श्रीराम ऐसे दिखाई देते थे

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नई दिल्ली। राम नवमी के दिन मर्यादा-पुरूषोत्तम भगवान राम जी का जन्म हुआ था। गोस्वामी जी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस के  बालकाण्ड में स्वयं लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्या जी में विक्रम सम्वत् १६३१ (१५७४ ईस्वी) के रामनवमी (मंगलवार) को किया था। गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में श्रीराम के जन्म का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है-भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी॥कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता॥करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रकट श्रीकंता॥ हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेता युग  में दशनंन रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनः स्थापना के लिए स्वयं भगवान श्रीहरि विष्णु  ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। श्रीराम चन्द्र जी का जन्म चैत्र  शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशला जी  की कोख से, महाराज दशरथ जी  के घर में हुआ था। यह पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। रामनवमी के दिन ही चैत्र  की नवरात्री की समाप्ति भी हो जाती है।

रामजी के जन्म की कथा

एक कथा के अनुसार अयोध्या के राजा  राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं लेकिन बहुत समय तक कोई भी राजा दशरथ को सन्तान का सुख नहीं दे पायी थीं जिससे राजा दशरथ बहुत परेशान रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने को विचार दिया। इसके पश्चात् राजा दशरथ ने अपने जमाई, महर्षि ऋष्यश्रृंग से यज्ञ कराया। तत्पश्चात यज्ञकुण्ड से अग्निदेव अपने हाथों में खीर की कटोरी लेकर बाहर निकले।  यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ऋष्यश्रृंग ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने को दी। खीर खाने के कुछ महीनों बाद ही तीनों रानियाँ गर्भवती हो गयीं। ठीक 9 महीनों बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशलया जी  ने रामजी को जो भगवान हरि विष्णु जी  के सातवें अवतार थे, कैकई जी श्रीभरत  को और सुमित्रा जी ने जुड़वा बच्चों लक्ष्मण व शत्रुघन को जन्म दिया। प्रभु श्रीरामजी  का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों को संघार करने के लिए हुआ था। हिन्दू समुदाय में रामनवमी पर्व का काफी महत्व है।

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