बिहार में जो कुछ किया उसी तर्ज पर बंगाल में भी, चुनावी रणनीतिकारों ने किया बिहार माडल फाइनल, चुनाव से पहले मिल सकती है महिलाओं को सौगात
भाजपा का ‘5% हिंदू वोट फॉर्मूला’ और ग्रामीण अभियान से तृणमूल को चुनौती, बिहार मॉडल पर दांव
नई दिल्ली/कलकत्ता। पश्चिम बंगाल की सियासी जमीन गरमाती जा रही है। 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा ने अपनी रणनीति को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। बिहार विधानसभा चुनावों में मिली शानदार जीत से उत्साहित भाजपा अब ‘बिहार मॉडल’ को बंगाल में दोहराने की तैयारी में है। पार्टी का फोकस हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण, ग्रामीण स्तर पर घुसपैठ, आर्थिक विकास के वादे और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार पर भ्रष्टाचार व महिलाओं की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर हमला करने का है। विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने दावा किया है कि ‘5% हिंदू वोटों का शिफ्ट’ ही ममता बनर्जी की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए काफी होगा।
बिहार फार्मूला मुफीद
भाजपा बिहार माडल पर बंगाल में चुनाव में उतरने जा रही है। हालांकि संगठन का एक बड़ा तबका नयी रणनीति व प्लान की भी बात कर रहा है। भाजपा के केंद्रीय पर्यवेक्षक सुनील बंसल और भूपेंद्र यादव की अगुवाई में पार्टी ने हालिया संगठनात्मक बैठकों में 2026 की ‘रोडमैप’ तैयार की है। बिहार में सफल साबित हुईं ग्रासरूट मोबिलाइजेशन और विकास-केंद्रित एजेंडा को बंगाल में लागू करने का प्लान है। प्रमुख बिंदु:
- 5% हिंदू वोट फॉर्मूला: सुवेंदु अधिकारी के नेतृत्व में ‘हिंदू-हिंदू भाई-भाई, 2026 भाजपा चाही’ जैसे नारों के जरिए हिंदू वोटों का एकीकरण। पार्टी का दावा है कि टीएमसी से मात्र 5% हिंदू वोट शिफ्ट होने पर 70 से ज्यादा सीटों पर फर्क पड़ सकता है। इसमें मटुआ समुदाय जैसे हाशिए के हिंदू वर्गों को लक्षित किया जा रहा है। बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों पर हमलों को जोड़कर ‘बंगाली संस्कृति और पहचान’ का मुद्दा उठाया जाएगा।
- ग्रामीण अभियान ‘ग्राम चalo’: 2024 लोकसभा चुनावों में ग्रामीण क्षेत्रों में पिछड़ने के सबक से, भाजपा के शीर्ष नेता गांवों में उतरेंगे। ‘ग्राम चalo’ प्रोग्राम के तहत हर बूथ पर पहुंच बनाई जाएगी, यहां तक कि मुस्लिम बहुल इलाकों में भी। उद्योग विकास, रोजगार सृजन और इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर देकर बेरोजगारी का मुद्दा उठाया जाएगा।
- आंतरिक सुधार और उम्मीदवार चयन: 2021 के चुनावों में ‘टर्नकोट’ (दलबदलू) उम्मीदवारों से गड़बड़ी के सबक से, अब पार्टी के अपने वफादार कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता। हर विधानसभा क्षेत्र में 2-3 लॉयलिस्ट्स को आगे लाया जाएगा। जिला अध्यक्षों को टिकट न देने का फैसला लिया गया है, ताकि संगठन मजबूत रहे।
- सांस्कृतिक और डिजिटल आउटरीच: दिसंबर 2025 से फरवरी 2026 तक कला, संगीत, थिएटर और फिल्म फेस्टिवल आयोजित होंगे। यह टीएमसी के कोलकाता इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (किफ) को काउंटर करने का प्रयास है। साथ ही, बांग्लादेशी घुसपैठ और अवैध प्रवास को चुनावी मुद्दा बनाया जाएगा, जिसमें स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) का विरोध शामिल है।
- ममता पर फोकस से बचाव: अभियान में सीधे ममता बनर्जी पर हमला न करके, टीएमसी सरकार की विफलताओं—महिलाओं की सुरक्षा, भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था—पर जोर। अमित शाह की कोलकाता यात्रा से पार्टी को नई ऊर्जा मिली है।
चुनौतियां और टीएमसी का जवाब
भाजपा को टीएमसी की मजबूत ग्रासरूट मशीनरी और बंगाली पहचान की राजनीति से चुनौती है। ममता और अभिषेक बनर्जी ने ‘बंगाली आइडेंटिटी’ को हथियार बनाया है, जो भाजपा के ‘जय श्री राम’ नारों का काउंटर है। हाल के सर्वे बताते हैं कि भाजपा का वोट शेयर 2019 के बाद बढ़ा है, लेकिन ग्रामीण गहराई की कमी बनी हुई है। सुवेंदु अधिकारी ने कहा, “बिहार की जीत अब बंगाल की बारी है। स्वच्छ वोटर लिस्ट के साथ हम जीतेंगे।”
चुनावी परिदृश्य: कब-क्या होगा?
चुनाव मार्च-अप्रैल 2026 में होने की संभावना है। भाजपा का लक्ष्य 2021 के 77 सीटों से दोगुना करना है। पार्टी नेता गिरिराज सिंह ने चुनौती दी, “बिहार के बाद बंगाल में भाजपा की जीत पक्की।”
यह रणनीति बंगाल की सियासत को धार्मिक ध्रुवीकरण की ओर ले जा रही है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह दोधारी तलवार साबित हो सकती है। अपडेट्स के लिए बने रहें। जय हिंद! 🏛️🇮🇳
| प्रमुख मुद्दे | भाजपा का प्लान |
|---|---|
| हिंदू वोट एकीकरण | 5% शिफ्ट फॉर्मूला, मटुआ आउटरीच |
| ग्रामीण पहुंच | ‘ग्राम चalo’, बूथ-लेवल मोबिलाइजेशन |
| आर्थिक एजेंडा | उद्योग प्रोत्साहन, रोजगार सृजन |
| सांस्कृतिक | फेस्टिवल्स, बंगाली पहचान का मुद्दा |
| टीएमसी पर हमला | भ्रष्टाचार, महिलाओं की सुरक्षा |