
कैंट बोर्ड के चुनाव का क्या खत्म होगा इंतजार, रक्षामंत्री की चुनाव की घोषणा के बाद भी संशय, अफसरों को सत्ता मोह
मेरठ/ कैंट बोर्ड के अंतिम चुनाव साल 2018 में हुए थे, जब कैंटोनमेंट एक्ट 2006 के तहत विभिन्न बोर्डों के लिए मतदान संपन्न हुआ, इसके बाद देश भर की छावनियों को नागरिक प्रशासन में मर्ज किए जाने की बात कही जाने लगी। (हालांकि इतने सालों बाद भी इसका गजट नहीं हो सका। लेकिन स्थानीय स्तर पर गाहेबगाहे कैंट की संपत्तियों को लेकर खास रूचि रखने वाले भाजपा के कुछ बडे नेता जरूर एक्टिव रहे) 2023 में रक्षा मंत्रालय ने 58 कैंट बोर्डों के चुनाव रद्द कर दिए। इसका मुख्य कारण कैंट क्षेत्रों के सिविल हिस्सों को नगर निगमों में मर्ज करने की प्रक्रिया को तेज करना था। कुछ जगहों पर अप्रैल 2023 में आंशिक चुनाव निर्धारित थे, लेकिन ये भी क्षेत्र विभाजन और मर्जर की मुंह बाए खड़ी समस्या के कारण स्थगित हो गए।
निवर्तमान उपाध्यक्ष बीना वाधवा ने किया स्वागत
कैंट बोर्ड की निवर्तमान उपाध्यक्ष बीना वाधवा समेत भाजपा के तमाम नेताओं ने रक्षा मंत्री की घोषणा का स्वागत किया। बीना वाधवा ने कहा कि लोकतंत्र में चुनाव अनिवार्य है। यह जनता को अपना प्रतिनिधि चुनने की शक्ति देता है। इस बात को रक्षामंत्री ने समझा है और उनकी घोषणा का कैंट के बाशिंदे स्वागत करते हैं।
अफसरों के हाथों में सत्ता के केंद्रीयकरण से असंतोष
लंबे अंतराल के दौरान कैंट बोर्डों का प्रशासन मुख्य रूप से प्रशासकों या बोर्ड अधिकारियों के हाथों में केंद्रीत रहा, जिससे निवासियों में असंतोष बढ़ा। बोर्ड में उनकी नुमाइंदगी खत्म हो गयी। तमाम लोगों ने केंद्र से कैंट बोर्ड के चुनाव कराए जाने का आग्रह किया, लेकिन अब रक्षामंत्री की घोषणा के बाद एक बार फिर से कैंट बोर्ड के चुनाव की आस जगी है।
अभी मुश्किलें अपार
कैंट बोर्ड के 8 वार्डों में फैले 44 मोहल्लों में से सिविल क्षेत्रों को चरणबद्ध तरीके से मर्ज करने का प्लान है। इस प्लानमें प्रस्तावित मुख्य रूप से बाजारों और आवासीय इलाकों पर केंद्रित हैं। चुनाव ना कराने की पैरवी करने वालों का तब कहना था कि कैंट के 44 मोहल्लों में से अधिकांश सिविल हिस्से शामिल हो सकते हैं। मर्जर के बाद ये क्षेत्र नगर निगम के 90 वार्डों में विलय हो जाएंगे, जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सड़क, जल आपूर्ति और स्वच्छता में सुधार होगा, यह बात अलग है कि उनकी कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकीं और समस्याएं बजाए खत्म होने के चुनाव ना होने से बढ़ती चली गर्इं। क्योंकि नगर निगम की बात कही जाएं तो वहां अपार जनसमस्याएं हैं, वहीं दूसरी ओर मर्जर प्रक्रिया में कई चुनौतियां रहीं, जैसे भूमि विवाद, राजस्व हानि ( 550 करोड़ रुपये का जीएसटी घाटा) और सुरक्षा चिंताएं।
इनके मर्जर का प्रस्ताव
रजबन आवासीय और बाजार क्षेत्र, लालकुती सैन्य सीमा से अलग, तोपखाना आरए बाजार को विधायक ने मर्जर में शामिल करने पर जोर दिया, आबूलेन, बांबे बाजार, हर्षपुरी, जुबली गंज आदि शामिल हैं
कब क्या हुआ
साल 2024 जनवरी में कैंट के 8 वार्डों के सिविल क्षेत्रों की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। मई में कैंट विधायक अमित अग्रवाल ने आपत्ति जताई कि बंगला एरिया (सैन्य आवासीय क्षेत्र) को भी शामिल किया जाए, अन्यथा तोपखाना-आरए बाजार जैसे हिस्सों का मर्जर अधूरा रहेगा। डीएम ने कमेटी को सुझावों पर रिपोर्ट देने के निर्देश दिए। यह मामला अभी लटका हुआ है।
कैंट के बाशिंदों का कहना है कि चुनाव ना होने से बोर्ड में उनकी नुमाइंदगी खत्म हो गई है। उनकी आवाज उठाने वाला अब कोई नहीं। बोर्ड का स्टाफ मनमानी पर उतरा हुआ है। रक्षामंत्री की घोषणा से यदि चुनाव का रास्ता खुलता है तो इससे सत्ताधारी भाजपा को ही सबसे ज्यादा फायदा होगा। बोर्ड पर भगवा लहराएगा।