नई दिल्ली। नवदुर्गा माँ दुर्गा के नौ रूपों को कहा जाता है, जिनकी पूजा नवरात्रि के नौ दिनों में की जाती है. ये नौ रूप हैं: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री.
आदिशक्ति की उत्पत्ति या तो सृष्टि की शुरुआत में एक शाश्वत, सर्वव्यापी दिव्य ऊर्जा के रूप में हुई या पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिषासुर जैसे असुरों के अत्याचार को समाप्त करने के लिए देवताओं ने अपनी शक्तियों को मिलाकर आदिशक्ति रूप में देवी दुर्गा को प्रकट किया। इसलिए, आदिशक्ति को ब्रह्मांड की मूल शक्ति और सभी रूपों का आधार माना जाता है, जिससे सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार होता है। शारदीय नवरात्र उत्सव की धूम केवल भारत में ही नहीं बल्कि सात समुंद्र पार के देशों और खाड़ी देशों में रहने वाले हिंदू परिवारों में भी है। लेकिन सृष्टि में सबसे पहले नवरात्र व्रत किसने रखे यह बड़ा सवाल है। मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य यानी दुर्गा सप्तशती में विस्तार से वर्णन मिलता है कि सबसे पहले नवरात्रि का व्रत राजा सूरथ और समाधि वैश्य ने रखा। देवी महात्म्य की कथा में बताया गया है कि राजा सूरथ दानवीर था। उन्होंने अपने सभी शत्रुओं को पराजित कर दिया था। उनकी दंड़ नीति बहुत कठोर थी। उसके बाद भी उनके राज्य के कुछ दुष्ट अमात्यों ने षड़यंत्र किया। दरबारियों को अपने साथ मिला लिया और महल में बंधक बना लिया। एक दिन वन में शिकार खेलने के बहाने राजा सूरथ महल से निकल गए। भटकते हुए वह मेघा मुनि के आश्रम में पहुंचे। वहां कुछ समय विश्राम किया। वहीं पर उनकी मुलाकात समाधि नाम के वैश्य से हुई। समाधि नाम के इस वैश्य को भी धन के मोह में आकर पुत्र व पत्नी ने घर से निकाल दिया था। लेकिन इन दोनों की आस्क्ति अपने परिवार के प्रति थी। दोनों मेघा मुनि के पास गए। तब मेघा मुनि के कहने पर दोनों ने ब्रत रखा। पूजा अर्चना से प्रसन्न होकर देवी भगवती ने दोनों को मनवांछित वर भी दिए। इसके अलावा भी कुछ अन्य पौराणिक कथाएं भी देवी के नवरात्र व्रत को लेकर हैं। इसके अलावा एक कथा भगवान श्रीराम की लंका विजय से भी जुड़ी है। बताया जाता है कि जब श्रीराम लंका पर चढाई की तैयारी कर रहे थे तब उन्होंने देवी भगवती की पूजा अर्चना की। तब देवी ने उन्हें विजय का वरदान दिया।
देश व दुनिया में नवरात्र की धूम
पूरे भारत में, देवी दुर्गा के सम्मान में नवरात्रि का पर्व अत्यधिक उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें भक्त देवी के नौ रूपों की पूजा करते हैं और बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव मनाते हैं। इस दौरान, देश भर के मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, खासकर घटस्थापना के दिन, और विभिन्न क्षेत्रों में सांस्कृतिक अनुष्ठान और उत्सव आयोजित किए जाते हैं, जैसे अहमदाबाद में जीवंत गरबा और दांडिया।
देशभर में उत्सव और तैयारियां
- मंदिरों में भीड़: नवरात्रि के शुरुआती दिनों में, विशेष रूप से पहले दिन, भक्त मां दुर्गा के दर्शन के लिए मंदिरों में लंबी कतारों में खड़े रहते हैं।
- घटस्थापना: नवरात्रि का शुभारंभ घटस्थापना से होता है, जिसमें कलश स्थापित कर देवी की पूजा की जाती है।
- सांस्कृतिक अनुष्ठान: अहमदाबाद जैसे शहरों में, नवरात्रि एक बड़े सांस्कृतिक अनुभव में बदल जाती है, जहां गरबा और दांडिया जैसे पारंपरिक नृत्य और उत्सव पूरे जोश से मनाए जाते हैं।
- कलाकार और कारीगर: विदर्भ जैसे क्षेत्रों में, मंदिर के कारीगर देवी मां के आभूषणों को चमका कर उन्हें सजाने में व्यस्त रहते हैं, यह भी त्योहार के उत्साह को दर्शाता है।
वैज्ञानिक और धार्मिक पहलू
- वैज्ञानिक आधार: नवरात्रि के वैज्ञानिक आधार को पृथ्वी के वायुमंडल में होने वाले बदलावों और रोगाणुओं के बढ़ते प्रभाव से जोड़कर देखा जाता है, जो कि वर्ष में दो बार पड़ने वाली संधियों में सर्वाधिक होता है।
- शक्ति की आराधना: यह पर्व शक्ति की आराधना का महापर्व है, जो शक्ति के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करने और स्त्री शक्ति को समर्पित है।