
मुकदमा व जेल का है नियम, कानून की परवाह नहीं है करते, बगैर लाइसेंस के खाने के सामान की सप्लाई
मेरठ। भागदौड़ भरी जिंदगी में खासतौर से जिन परिवारों में परिवार के दोनों मुखिया यानी स्त्री व पुरूश नौकरी करते हैं वहां ऑन लाइन खाने का सामान मंगवाने का चलन काफी बढ़ गया है, इसीलिए कहा जा रहा है कि ऑन लाइन खाने का सामान मंगवाया है तो जरा ठहर जाए और यह देख लें कि जो सामान मंगवाया गया है वो दूषित तो नहीं। यह भी सुनिश्चित कर लें कि जिसके हाथों खाने का यह सामान मंगवाया गया है क्या उसके पास फूड लाइसेंस है। तमाम बड़ी कंपनियां खाने का सामान सप्लाई करा रही हैं, लेकिन उनकी ओर से जो खाने का सामान लेकर आते हैं उनमें से एक के भी पास फूड लाइसेंस नहीं होता। हैरानी तो इस बात की है कि बिना लाइसेंस के काम करना गैर-कानूनी है और इससे जुर्माना, मुकदमा या जेल भी हो सकती है। इसके बाद भी मल्टी नेशनल कंपनियों का जो स्टाफ खाने का सामान सप्लाई करता है वो फूड लाइसेंस की अनिवार्यता नहीं स्वीकार करते। उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के प्रदेश अध्यक्ष लोकेश अग्रवाल का कहना है कि फूड एंड सेफ्टी विभाग के अफसरों को केवल छोटे व स्थानीय व्यापारी नजर आते हैं आज तक एक भी मल्टी नेशनल कंपनी के सामान की ना तो सेंपलिंग की गयी और ना ही अन्य कार्रवाई की गयी। लेकिन उनका संगठन यह स्वीकार नहीं करेगा। इसके खिलाफ प्रदेश व्यापी आंदोलन किया जाएगा।
जबकि फूड एक्ट में इसका प्रावधान है। फूड एक्ट कहता है कि खाने का सामान सप्लाई करने वालों के लिए FSSAI लाइसेंस या पंजीकरण अनिवार्य है, क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा और मानकों को सुनिश्चित करता है। यह लाइसेंस भारत सरकार द्वारा निर्धारित खाद्य मानकों को पूरा करने को प्रमाणित करता है और यह ग्राहकों का भरोसा बढ़ाने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करता है कि आप कानूनी नियमों का पालन कर रहे हैं। भारत में खाद्य पदार्थों के निर्माण, भंडारण, वितरण और बिक्री से जुड़े हर व्यक्ति (चाहे वह एक छोटा व्यवसाय हो या बड़ा) को FSSAI पंजीकरण या लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक है।
रडार पर केवल व्यापारी
फूड सेफ्टी विभाग की कार्रवाई के आम व्यापारियों तक ही सीमित है। यह कार्रवाई भी केवल त्यौहारी सीजन में ही यद आती है। कार्रवाई करने वाले अफसर खाने के उन सामानों को लेकर भी छापे व सेंपल की कार्रवाई करते हैं जो कंपनी से सील बंद आता है। उसमें यदि मिलावट पायी जाती है तो जिस कंपनी से वह सीलबंद सामान आता है उस पर कार्रवाई के बजाए जो बेच रहा है उस पर कार्रवाइ्र की जाती है। इस बात को लेकर व्यापारियों का विरोध है।