खाकी पर भी पड़े थे भूरा हत्या कांड़ की छींटे

खाकी पर भी पड़े थे भूरा हत्या कांड़ की छींटे
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खाकी पर पड़े थे भूरा हत्या कांड़ की छींटे,

-कभी भोपाल की चिलम भरता था, बाद में हो गया जानी दुश्मन

-सुरेन्द्र दौरालिया व उसकी पत्नी की हत्या में भी आया था रविन्द्र भूरा का नाम

मेरठ। भरी कचहरी में 16 अक्तूबर साल 2006 को पुलिस कस्टडी में गोलियों से भून दिए गए रविन्द्र भूरा हत्या कांड़ के छींटे तब के कुछ बड़े पुलिस अफसरों की वर्दी पर पड़े थे। सुनने में तो यहां तक आया था कि सारी पटकथा ही मेरठ के तत्कालीन एक बड़े पुलिस अफसर की कलम से लिखी गयी थी। चर्चा यहां तक भी थी कि जो कुछ भी उस दिन कचहरी में किया गया, उससे पहले उस पुलिसअफसर को विश्वास में लिया गया। शायद यही वजह रही होगी जो हत्या कांड़ के बामुश्किल से दो मिनट में उक्त पुलिस अफसर मौेक पर पहुंच गए थे। और हत्या कांड में शामिल जिस राजेन्द्र उर्फ  चुरमुडा को मौके से जिंदा पकड़ लिया गया था बाद इस अफसर के पहुंचने के बाद खबर मिली कि उसको भी मार दिया गया। चुरमुडा इकलौता ऐसा शख्स था जो किसी निष्पक्ष पुलिस अफसर के यदि हत्थे चढ़ जाता तो रविन्द्र भूरा हत्या कांड़ को लेकर कई बेनकाब हो जाते। एक और बात जिस पुलिस अफसर का नाम रविन्द्र भूरा हत्या कांड में आया वह पुलिस अफसर और अजय जडेजा सजातिय हैं। तब कि सपा सरकार के एक बड़े मंत्री के करीबी दोनों को बताया जाता था।

भोपाल सिंह की बैठक से शुरू हुआ था भूरे सफर

दौराला के भोपाल सिंह जो बाद में छपरौली से विधायक भी बन गए थे उनकी बैठक से ही दौराला के वलीदपुर में रहने वाले रविन्द्र भूरा का क्राइम की दुनिया का सफर शुरू हुआ। बताया जाता है कि शुरूआती दौरा में भूरे का कोई अपराधिक इतिहास नहीं था, लेकिन भोपाल सिंह का हुक्का छोड़कर कब उसने हथियार थाम लिए यह उसको करीब से जानने वालों को भी नहीं पता, लेकिन रविन्द्र से भूरा बनने तक का सफर भोपाल सिंह की बैठक से ही हुआ था।

भूरा के अलावा शिव चरण भी

केवल भूरा ही नहीं था जिसकी जिंदगी का सफर भोपाल सिंह की छत्रछाया में शुरू हुआ हो। एक और भी बड़ा नाम था वो था चाचा शिवचरन का। हालांकि शिव चरण का कद उस वक्त भूरा से बहुत ऊंचा था।   दरअसल उस वक्त भोपाल सिंह व शि चरण सिंह सेना में भर्ती के नाम पर एक रैकेट चला रहे थे। तब शिवचरण 510 बेसवर्क शॉप में नौकरी किया करते थे। लेकिन उनकी आमदनी का बड़ा जरिया फौज में भर्ती के नाम पर चलाया जा रहा रैकेट था। दरअसलम में  होता यह था कि मानों सौ युवाओं से पैसे लिए औ उनमें से दस अपनी मेहनत से भर्ती हो गए तो नाम यही होता था कि भोपाल व शिव चरण ने करायी है भर्ती, और जिसने एक बार इन्हें पैसे दे दिए उसकी इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि इनसे अपनी रकम वापस मांग ले। शिव चरण के साथ एक अन्य शख्स भी जुड़ा था उसका नाम था जनक यादव उर्फ जडेजा।

ऐसे बदली दोस्ती दुश्मनी में

भोपाल सिंह और शिव चरण की दोस्ती जग जाहिर थी, लेकिन इस दोस्ती के दुश्मनी में बदलने के पीछे एक लंबी और फिल्मी कहानी है। यह कहानी शुरू हुई थी सदर थाना क्षेत्र लाल क्वाटर से। वहां कैंट बोर्ड में मुलाजिम का परिवार रहता था। उस मुलाजिम की पत्नी से भोपाल व शिवचरण दोनों की दोस्ती थी। पुरानी कहावत है कि एक म्यान में दो तलवारे नहीं रह सकतीं वैसा ही कुछ भोपाल सिंह व शिवचरण के बीच हुआ। दोस्ती कब दुश्मनी में बदल गयी यह शायद दोनों को नहीं पता चला, लेकिन दोस्ती से दुश्मनी की पटकथा छावनी के लाल क्वाटर में लिखी गयी थी। और अंत हुआ बेगमपुल पीपी पेट्रोल पंप पर जहां शिव चरण की सरेआम गोलियां बरसा कर हत्या कर दी गयी। उस हत्या कांड़ में भोपाल सिंह के छोटे भाई सुरेन्द्र दौरालिया एंड गिरोह  का नाम आया था।

भोपाल की हत्या से हिसाब चुकता

शिव चरण की हत्या के बदला भोपाल सिंह की जिला अस्पताल में हत्या कर लिया गया। भोपाल सिंह की हत्या भी पुलिस कस्टडी में हुई थी। भोपाल की हत्या में शिव चरण के करीबी समझे जाने वाले चुरमुडा का नाम आया था। इनके अलावा भी कई नाम इसमें सामने आए थे। तब तक रविन्द्र भूरा की भी  भी भोपाल सिंह के परिवार यानी उनके छोटे भाई से भीतर ही भीतर दुश्मनी हो गयी थी। दुश्मनी भी ऐसी कि जिसको पहले मौका मिले वहीं एक दूसरे को मार दे। फिर हुआ भी वैसा ही

सुरेन्द्र दौरालिया की हत्या में भूरे का नाम

सुरेन्द्र दौरालिया की हत्या बाउंड्री रोड कोठी 22-बी के बराबर वाली कोठी में घुसकर की गयी। बताया जाता है कि वक्त शाम का था, सुरेन्द्र दाैरालिया उस कोठी में उस वक्त मौजूद थे। उन्हें आवाज देकर नीचे बुलाया गया और गोली मार दी। उसके बाद हत्यारा ऊपर की ओर गया। वहां पर सुरेन्द्र दौरालिया की पत्नी मौजूद थी। हत्यारों ने उनके पहले पांव छूएं और फिर उनकी भी गोली मारकर हत्या कर दी। इससे पहले सुरेन्द्र दौरालिया अपनी जान बचाने को ऊपर की ओर भागा ताकि हथियार उठा सके, लेकिन जो मारने आए थे, उन्होने मौका ही नहीं दिया। दौरालालिया हत्या कांड़ में रविन्द्र भूरा का नाम सामने आया था।

केबिल की धन वर्षा में हिस्सा

साल 2्002 में केबल के कारोबार में अकूत संपदा बरस रही थी। मेरठ में केबल का काम जिनके हाथ में था उन्हें तब भूरा  का आदमी माना जाता था। हालांकि बाद में केबिल के धंधे में बदन सिंह बद्दो ने भी हाथ आजमाने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बन सकी और खून खराब हो गया। कहा जाता है कि केबिल के धंधे में हो रही धन वर्षा में भूरा का भी हिस्सा होता था। इस बीच शिव चरण खेमे में गिना जाने वाले जडेजा भी केबल के धंधे की धन वर्षा मे हिस्सा मांगने लगा। जो केबिल का धंधा संभाल रहे थे सुनने मे आया है कि उन्होंने जडेजा से साफ कह दिया कि वो तो केवल एक को हिस्सा दे सकते हैं। बस यही से रविन्द्र भूरा की मौत की पटकथा लिखे गयी। उसके बाद जो कुछ हुआ सब के सामने है।

हत्या कांड में आराेपियों को क्लीनचिट

मेरठ में 18 वर्ष पूर्व कचहरी में पेशी के दौरान हुए रविंद्र भूरा हत्याकांड के सभी पांच आरोपियों को न्यायालय ने संदेह का लाभ देते हुए रिहा कर दिया है। इस घटना के दौरान रविंद्र भूरा का भतीजा गौरव, एक बदमाश और कांस्टेबल मनोज भी मारे गए थे। आरोपी अजय जडेजा जेल में है, जबकि आजाद, अजय मलिक, यशवीर व गुलाब जमानत पर बाहर हैं। आरोपियों के अधिवक्ता वीके शर्मा ने बताया कि एसआई रेशम सिंह ने थाना सिविल लाइन द्वारा मुकदमा दर्ज कराया गया था। जिसमें बताया था कि 16 अक्तूबर 2006 को उनकी ड्यूटी जिला कारागार मेरठ में बंद अभियुक्त रविंद्र भूरा की पेशी में लगी थी। पुलिस लाइन से सरकारी असलाह लेकर वह कड़ी सुरक्षा के बीच रविंद्र भूरा की पेशी करने कचहरी लाए थे। कचहरी में तेरह न्यायालय भवन के पास सभी आरोपी अपने हाथ में पिस्तौल लेकर आए और रविंद्र भूरा पर फायरिंग शुरू कर दी। तभी कांस्टेबल मनोज कुमार ने साहस का परिचय देते हुए एक बदमाश को दबोच लिया था। बदमाश ने मनोज को गोली मार दी थी। जिससे कांस्टेबल मनोज कुमार घायल हो गया और सभी आरोपी मौके से फरार हो गए। इस घटना में रविंद्र भूरा और उसके भतीजे गौरव, एक बदमाश और कांस्टेबल की मौके पर मृत्यु हो गई थी। इस मामले में पुलिस ने 27 गवाह न्यायालय में पेश किए थे। आरोपियों की ओर से उनके अधिवक्ता द्वारा न्यायालय में बताया कि पुलिस द्वारा सभी आरोपियों को इस मुकदमे में झूठा फंसाया जा रहा है। जिसका सबूत न्यायालय में पेश किया। न्यायालय अपर जिला जज कोर्ट संख्या दो मेरठ ओमवीर सिंह द्वितीय ने आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।

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