धर्मांतरण कानूनों का विरोध नहीं उचित

kabir Sharma
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अखिल भारतीय श्री पंच निमोर्ही अखाडा के श्री श्री 108 महेन्द्र दास जी महाराज ने धर्मांतरण के कानूनों को चुनौती देने को बताया विभाजनकारी



NewDelhi/मेरठ। धर्मांतरण रोकने के लिए देश के अलग-अलग राज्यों के द्वारा बनाए गए कानूनों को चुनौती पर पंच निर्मोही अखाडेÞ ने विरोध व विभाजनकारी बताया है। ऐसे लोगों के विरोध की बात कही है। इस मुद्दे को लेकर शनिवार को कैंट के वेस्ट एंड रोड स्थित बालाजी मंदिर में अखिल भारतीय श्री पंच निमोर्ही अखाडा के श्री श्री 108 महेन्द्र दास जी महाराज ने कहा कि भारत की महानता उसकी विविधता में है, और इस विविधता को सुरक्षित रखने के लिए धर्म-स्वातंत्र्य का महत्व है। हर व्यक्ति को अपनी आस्था में जीने का अधिकार है, लेकिन छल, बल और प्रलोभन से होने वाला धर्मांतरण इस स्वतंत्रता का हनन है। इतिहास गवाह है कि जब-जब छल, बल और लालच से धर्मांतरण हुआ है, तब-तब समाज में विभाजन और संघर्ष पैदा हुए हैं। आज के समय में विदेशी धन और मिशनरियों द्वारा चलाया जा रहा धर्मांतरण हमारे गांवों, जंगलों और निर्धन बस्तियों को निशाना बना रहा है।
कई राज्यों ने धर्म-स्वातंत्र कानून बनाए हैं जो छल-बल और प्रलोभन से धर्मांतरण रोकने के लिए हैं। जिन कानूनों को चुनौती दी जा रही है उनमें हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2019, मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020, उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020, और उत्तराखंड में इसी तरह का एक अधिनियम शामिल है, लेकिन इसकी आलोचना हो रही है, यूपी संशोधन में विवाह से धर्म परिवर्तन पर 20 साल उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है।
उन्होंने कहा कि समय समय पर निरंतर अंतराल पर होने वाले ऐसे कृत्यों का ही परिणाम है कि आज राज्यों को ये धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की आवश्यकता पड़ी। उन्होने कहा कि विश्व समुदाय की यह जिम्मेदारी है कि सुरक्षा मानवाधिकारों की रक्षा के लिए ये प्रभावी कानून लागू हो हर राज्य को उस राज्य की आवश्यकता के अनुसार ये कानून बनाने में सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप न करे।
हमारे संविधान का अनुच्छेद 25 स्पष्ट कहता है, प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता है कि वह अपने धर्म का प्रचार-प्रसार कर सके। लेकिन उसी अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि यह स्वतंत्रता जन-व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
इसका सीधा अर्थ है आप अपनी आस्था रख सकते हैं, प्रचार कर सकते है, लेकिन दबाव, लालच या छल से अपना धर्म अपनाने को मजबूर नहीं कर सकते।

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