
स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों से लड़ रहे थे, श्याम प्रसाद मुखर्जी मुस्लिम लीग के साथ चला रहे थे सरकार, संजय सिंह का भाजपा पर बड़ा हमला
नई दिल्ली। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जब पूरा देश जब गांधी जी के आह्वान पर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहा था उस वक्त श्याम प्रसाद मुखर्जी सरीखे संघी मुस्लिम लीग के साथ अंग्रेजों की सरकार का हिस्सा बने हुए थे। वो फजलुलहक की सरकार में मंत्री बने थे। इतना ही नहीं फजलुलहक वो शख्स थे जो आजाद पाकिस्तान के पहले होम मिनिस्टर बने। यह बात संसद में बहस के दौरान आप सांसद संजय सिंह ने कही। उन्होंने चुनौती दी कि भाजपा के नेता आरएसएस के चार लोगों के नाम बताएं जो वंदे मातरम गाने के आरोप में जेल गए हों। 1942 में तो आरएसएस वाले अंग्रेजों को गांधी के द्वारा शुरू किए गए आंदोलन को कुचलने के लिए खत लिख रहे थे। किसी भी संघी ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग नहीं लिया, जबकि हिंदू महासभा (जिससे आरएसएस निकटता रखता था) ने मुस्लिम लीग के साथ कुछ प्रांतों में गठबंधन सरकारें चलाईं।
RSS हिंदू महासभा पर अक्सर आरोप लगते हैं कि उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों की मदद की या सीधे तौर पर विरोध नहीं किया, खासकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान; क्योंकि RSS ने उस समय सीधे आंदोलन में भाग नहीं लिया और संगठन के रूप में दूरी बनाए रखी, जबकि कई आलोचक इसे अंग्रेजों के खिलाफ सक्रिय न होकर ‘गद्दारी’ मानते हैं, वहीं RSS का तर्क है कि वे समाज को मजबूत करने पर केंद्रित थे और उनके स्वयंसेवक व्यक्तिगत रूप से आंदोलनों में शामिल थे, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें भविष्य में चुनौती के रूप में देखा था, जिससे यह विषय ऐतिहासिक रूप से विवादास्पद आज भी बना हुआ है। लेकिन अब धारणा बनती जा रही है कि RSS व हिन्दू महासभा वाले अंग्रेजों के प्रबल मददगार बने हुए थे।
हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग चल रहे थे सरकारें
1939 में कांग्रेस मंत्रिमंडलों के इस्तीफे के बाद हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ बंगाल, सिंध और उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (NWFP) में गठबंधन सरकारें बनाईं। वीडी सावरकर के नेतृत्व में हिंदू महासभा ने इसे “व्यावहारिक समझौता” बताया। बंगाल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी लीग मंत्रिमंडल में उप मुख्यमंत्री थे, जब 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था। कई स्रोतों के अनुसार, यह गठबंधन ब्रिटिशों के युद्ध प्रयासों का समर्थन करने और कांग्रेस के आंदोलन को कमजोर करने से जुड़ा था।
आरएसएस की : स्वतंत्रता आंदोलन से दूरी
आरएसएस की स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की, जो पहले एक बड़े कांग्रेसी नेता थे, लेकिन उन्होंने संघ को गैर-राजनीतिक सांस्कृतिक संगठन बनाया गया। दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में संगठन की भागीदारी ممنوع कर दी, हालांकि व्यक्तिगत स्तर पर शामिल होने की अनुमति थी। गोलवलकर का मानना था कि संघ का फोकस हिंदू संस्कृति की रक्षा पर है न कि ब्रिटिश विरोध पर। ब्रिटिश खुफिया रिपोर्टों में भी दर्ज है कि आरएसएस ने ब्रिटिश हुकूमत के कानूनों का पालन किया और आंदोलनों से दूर रहा। आरएसएस ने ब्रिटिशों से टकराव टाला, तिरंगे का विरोध किया और सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा दिया। गांधी हत्या के बाद गृहमंत्री सरदार पटेल ने 1948 में प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि कहा जाता है कि अरसे बाद नेहरू जी के कहने पर प्रतिबंध हटा दिया गया था।