सदर सब्जी मंड़ी में हटानी थीं बनवा दीं दुकानें

kabir Sharma
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सदर सब्जी मंड़ी से हटानी थी दुकानें, नई मंड़ी बनने के बाद होनी थी खाली, फर्जी पार्टनरशीप डीड से कैंट बोर्ड को धोखा या खुद खा रहे अफसर धोखा

मेरठ। छावनी के सदर सब्जी मंड़ी में जो दुकानें व फड़ आदि मौजूद हैं उन्हें हटवा जाना था, लेकिन इनको हटवाए जाने के बजाए जहां पहले फड़ हुआ करती थीं, वहां अब पक्की दुकानें तामीर करा दी गयीं। (नवीन मंड़ी बन जाने के बाद आबादी के बीच चल रही सभी सब्जी मंड़ियां नई मंड़ी में शिफ्ट की जानी थीं। सदर सब्जी मंड़ी भी नवीन मंड़ी में शिफ्ट की जानी थी, लेकिन कैंट बोर्ड के तब के अफसरों ने अपनी ड्यूटी अंजाम नहीं दी, नतीजा सामने है। ) इतना ही नहीं इन पक्की दुकानों पर इन दिनों शटर लगाए जाने का काम चल रहा हैै। कैंट बोर्ड के अफसरों या तो फड़ की जगह पक्की दुकानें बना दिए जाने से वाकई अंजान है या फिर जानबूझ कर अंजान बने रहने का नाटक कर रहे हैं। अंजान हो ऐसा लगता नहीं क्योकि सदर सब्जी मंड़ी स्थित कैंट बोर्ड के द्वारा आवंटित किए गए फड़ों पर पक्की दुकानें बनाए जाने का काम रात के अंधेरे में नहीं बल्कि दिन के उजाले में किया जा रहा है। सुनने में यहां तक आया है कि सदर सब्जी मंड़ी में कैंट बोर्ड ने जिन्हें यह फड़ आवंटित किए थे उनमें से ज्यादातर ने कथित फर्जी पार्टनरशिप डीड बनाकर दुकानों का कई-कई लाख में सौदा कर दिया और यहां से चले गए और कैंट बोर्ड के खजाने में एक पाई नहीं आयी। मसलन पूरी तरह से यह मामला राजस्व हानि का है।

साल 1950 में की थीं आवंटित

सदर सब्जी मंड़ी में जिन दुकानों की भारी भरकम रकम पर खरीद फरोख्त की गईं, वो दुकानें साल 1950 में आवंटित की गयी थीं। यहां यह भी बता दें कि इस स्थान पर इन दुकानों के अलावा कोई अन्य ऐसी जगह नहीं थी जहां सब्जी बेचने की अनुमति दी हो। सदर सब्जी मंड़ी में इन दुकानों के अलावा जहां भी सब्जी व फलों के फड़ व ठेले लगाए जा रहे हैं वो अवैध हैं। उनका कैंट बोर्ड के आवंटन से कोई सरोकार नहीं है। ये केवल रेवेन्यू स्टाफ की सेवा की बदौलत लगवायी गयी कहीं जा सकती हैं।

जगह कैंट बोर्ड की मालामाल बेचने वाले

सदर सब्जी मंड़ी की आवंटित फड़ों का मालिक कैंट बोर्ड है, लेकिन इनको खुर्दबुर्द कर मालामाल वो हो रहे हैं जिन्हें साल 1950 में इन दुकानाें का आवंटित किया गया था। सदर इलाके के यदि सर्किल रेटों की बात की जाए तो एक एक दुकान जो फड़ों के स्थान पर बना दी गयी, की कीमत लाखों लाख में है। जगह कैंट बोर्ड की और उस जगह पर बनायी गयी पक्की दुकानों से लेने वाले और बेचने वाले दोनों फायदे में लेकिन बड़ा सवाल कि कैंट बोर्ड का क्या मिला। यहां यह भी बता दें कि कुछ दुकानों में सब्जी के कारोबार के स्थान पर दूसरे काम कर लिए गए हैं। सब्जी मंड़ी में स्टीकर के काम की जो दुकानें चल रही हैं वहां पहले कैंट बोर्ड के द्वारा आवंटित फड़ हुआ करती थीं, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह कि कैंट बोर्ड के अफसरों को क्यों नहीं लाखों के इस खेल की भनक तक नहीं लगी। या फिर वो जानबूझ कर अंजान बने रहे।

नई मंड़ी में भी ले ली जगह

सदर सब्जी मंड़ी के तमाम ऐसे व्यापारी बताए जाते हैं जिन्हें कैंट बोर्ड ने फड़ आवंटित की थी। नई मंड़ी बन जाने के बाद इनमें से तमाम ने नई मंड़ी में भी अपने लिए जगह का आवंटन करा लिया और यहां का भी कब्जा नहीं छोड़ा। नई मंड़ी में फड़ आवंटित करने का सरकारका मकसद ही यही था कि जो दुकानें आबादी के बीच चल रही हैं उन दुकानों को आबादी से हटा कर नई मंड़ी शिफ्ट कर दिया जाए। लेकिन सदर सब्जी मंड़ी से तो कब्जा छोड़ा नहीं और नई मड़ी में भी आवंटन ले लिया। वैसे कब्जा छोड़ना नहीं था कैंट बोर्ड को यह कब्जा लेना था।

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