
मेरठ। कसूरवारों की लंबी फौज है लेकिन कार्रवाई का पता नहीं। मसला लिसाड़ीगेट के शकुर नगर में 30 जून के हादसे के लिए कसूरवारों की पूरी फौज मौजूद है, लेकिन इसको लेकर जब कार्रवाई की बात आती है तो कार्रवाई करने वाले हकलाते नजर आते हैं। दरअसल जिन्हें कार्रवाई करनी है वो बजाए कार्रवाई के कसूरवारों को बचाने में लगे हैं। शकूरनगर इलाके में जिस कालोनी में हादसे में मेडा के एक कर्मचारी की मौत और तीन कर्मचारी झुलसे उसके लिए पीवीवीएनएल यानि बिजली महकमा और मेरठ विकास प्राधिकारण और पुलिस के कर्मचारियों की पूरी फौज मौजूद है, लेकिन घटना के पांच दिन बाद भी किसी के भी खिलाफ अभी तक कार्रवाई नहीं की गयी है। यहां तक की एफआईआर भी नहीं।
लैटर डकार गए बिजली अफसर
प्राधिकरण वीसी अभिषेक पांडे के कार्यकाल के दौरान एक पत्र पीवीवीएनएल एमडी को भेजा गया था, जिसमें कहा गया था कि किसी भी अवैध कालोनी को प्राधिकरण की एनओसी के बगैर बिजली का कनैक्शन ना दिया जाए, लेकिन जिस कालोनी में दुखद हादसा हुआ है उसमें ना केवल कनैक्शन दिए गए बल्कि बड़े स्तर पर कनैक्शन दिए गए। बाकायदा 11 हजार की लाइन खिंची गयी। ट्रांसफार्मर लगाया दिया गया। जो मकान बन रहे थे, उनको भी कनैक्शन बांट दिए गए। यानि जो लेकर प्राधिकरण के वीसी की ओर से पीवीवीएनएल एमडी को भेजा गया उसका फ्यूज बिजली वालों ने ही उड़ा दिया। जब इसको लेकर सवाल किया गया तो अनआफिशियली कहकर इतना ही कहा गया कि जो रसीद कटा रहा है, एस्टीमेट पूरा जमा कर रहा है, उसको कनैक्शन ना देने की कोई वजह नहीं। रहीं कार्रवाई की बात तो अवैध कालोनियाें पर कार्रवाई की जिम्मेदारी है प्राधिकरण अफसरों की है, बिजली अफसरों का काम कनैशन देना है सो उन्होंने किया।
रातों रात नहीं काटी गयी अवैध कालोनी
शकूर नगर में जिस अवैध कालोनी में हादसे का चर्चा मेरठ से लेकर दिल्ली तक है, वो कालोनी रातों रात नहीं काट दी गयी। जानकारों की मानें तो अरसे से इसका काम चल रहा था। फिर ऐसा क्या हुआ कि एकाएक कालोनी ध्वस्त करने का ख्याल अफसरों को आ गया। इसको लेकर तमाम तरह की बातें अफसरों को लेकर कही जा रही हैं, वो बातें पर्दे में ही रहें या फिर तथाकथित जांच में यदि बाहर आ जाएं तो दूसरी बात है लेकिन प्राधिकरण के वीसी के नीचे के तमाम अफसरों पर ऊंगली उठायी जा रही है, यदि बातें वाकई सच है तो मामला बेहद गंभीर है और कसूरवारों की कतार में प्राधिकरण अफसर भी शामिल हैं। शासन का एक पुराना आदेश है, जिसके मुताबिक यदि कोई अवैध निर्माण होगा तो उस इलाके के थानेदार की जिम्मेदारी होगी, तो यह मान लिया जाए कि प्राधिकरण के अफसरों के साथ थानेदार ने भी जमीर का सौदा कर लिया। कहने का मतलब इतना भर है कि कसूरवारों की कमी नहीं लेकिन कार्रवाई का कुछ पता नहीं।