मेरठ। ऐसे वो दो नाम कौन हैं जिनको नाम के आगे पूरा सिस्टम नतमस्तक है। जिनका नाम लिए जाने के बाद कोई कुछ बोलता ही नहीं। बस उनका नाम लेने की जरूरत है बाकि काम खुद ब खुद बनते चलते जाते हैं। इसकी मिसाल शहर के पूर्वी कचहरी मार्ग पर शंकर आश्रम के सामने बन रही इमारत है।
ना सेटबैक ना पार्किग आग लगी तो बहुत मरेंगे, पूर्वी कचहरी मार्ग पर शंकर आश्रम के सामने किस के संघ पदाधिकारी के नाम कराया जा रहा निर्माण, पास में ही कई स्कूल कालेज, रिहायशी कालोनी, कचहरी परिसर व ठीक बगल में एक और इमेजिंग सेंटर
शहर के विजय नगर आवासीय इलाके पूर्वी कचहरी मार्ग पर सबसे महत्वपूर्ण शंकर आश्रम के सामने बगैर सेटबैक और पार्किग के मेन रोड से सटाकर किए जा रहे निर्माणाधीन हॉस्पिटल या कहें स्वास्थ्य सेंटर में यदि आग का हादसा हो गया तो इसमें सारे नहीं तो बड़ी संख्या में मरीजों व पैरा मेडिकल स्टाफ व कुछ डाक्टरों तथा तिमारदारों जो उस वक्त भीतर मौजूद होंगे की मौत तो निश्चित है। जो निर्माण करा रहे हैं उनकी तो जरूरत की बात समझी जा सकती है, क्योंकि इसके निर्माण के बाद भारी भरकम कमाई होनी तय है भले ही आग सरीखे हादसे के दौरान कुछ लोगों की जिंदगी खतरे में डाल दी जाए, लेकिन मेरठ विकास प्राधिकरण के अफसरों की क्या मजबूरी है जो वो यहां आकर नहीं झांक रहे हैं। उनके हाथ क्यों बंधे हुए हैं। प्राधिकरण के अफसरों की यह स्थिति तो तब है जब प्राधिकरण में उपाध्यक्ष के पद पर एक बेहद ईमानदार छवि और काम के कड़क आईएएस अफसर मौजूद हैं। इन आईएएस अफसर के रहते हुए भी यदि कायदे कानून ताक पर रखकर यहां निर्माण किया जा रहा है तो जिन अफसर को बेहद कड़क बताया जा रहा है उन पर भी गंभीर सवाल उठते हैं। प्राधिकरण के अन्य अफसरों की यदि बात करें जिनमें सचिव व जोनल अफसर सरीखे शामिल हैं उनकी रेपुटेशन पर पहले से लोग ऊंगली उठाते रहे हैं, उनकी बात करना तो वैसे ही फिजूल होगा।
किस आधार पर स्वीकृत कर दिया मानचित्र
नियमानुसार किसी भी भवन का मानचित्र खासतौर से व्यवसायिक भनक का मानचित्र स्वीकृत करने के लिए कायदे कानून बने हुए हैं। तो क्या यह मान लिया जाए कि शासन ने जो कायदे कानून इस संबंध में बनाए हैं उन पर प्रधिकरण के अफसरों की मनमानी भारी है। एक नियम यह भी है कि मानचित्र तभी स्वीकृत किया जा सकता है जब इस प्रकार के भवन में सेट बैक इसके अलावा वहां आने वाले लोगों की गाड़ियों के लिए पार्किग का मुनासिव इंतजाम किया गया हो। आरएसएस मुख्यालय शंकर आश्रम के सामने जो यह भवन बनाया जा रहा है यह तो पूर्वी कचहरी मार्ग से बिलकुल सटाकर बनाया जा रहा है। इसके अलावा इसमें सेट बैक तक नहीं छोड़ा गया है। जिस आग हादसे की बात की जा रही है यदि बनने के बाद यह यहां काफी लोग मौजूद होंगे उस वक्त यदि आग सरीखा हादसा इनमें हो गया तो उस दौरान तो बड़ा खतरा आरएसएस मुख्यालय शंकर आश्रम के लिए भी खड़ा हो जाएगा। इस बात की कौन गारंटी देगा कि आग की लपटे शंकर आश्रम तक नहीं पहुंचेगी या इसके आसपास जितनी भी रिहायशी कालोनियां वहां तक आग की लपटे नहीं पहुंचेंगी। सबसे बड़ा खतरा विजय नगर में इस निर्माणाधीन भवन के आसपास के रिहायशी भवनों को है। यहां शहर के अच्छे खास प्रतिष्ठित लोगों के परिवार रहते हैं। और भी बडेÞ खतरे की यदि बाद करें तो पांच कदम की दूरी पर जो इमेजिंग सेंटर चल रहा है क्या उसको बड़ा खतरा इससे पैदा नहीं होगा।
क्या रहे है फायर अफसर
हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं कि मेरठ विकास प्राधिकरण से जिस मानचित्र का दावा यहां निर्माण करने वाले कर रहे हैं, उन्होंने फायर एनओसी ली है या नहीं। आजकल कई ऐसे भवन है जिनके मानचित्र पास करने वाले मेरठ विकास प्राधिकरण के अफसर फायर एनओसी पर ज्यादा जोर नहीं देते हैं, भले ही नियम कायदों में फायर एनओसी जरूरी मानी गयी है। लेकिन अभी इस भवन बात मान भी लिया जाए कि इस भवन की फायर एनओसी ली भी गई तो बगैर सेटबैक का मुआयना किए फायर अफसरों ने इसको कैसे फायर एनओसी दे दी। या फिर यह मान लिया जाए कि फायर एनओसी देने वालें अफसरों ने अपनी कीमत लेकर इस भवन को फायर एनओसी थमा दी। वर्ना क्या कारण है कि फायर एनओसी देने वाले अफसरों ने एक बार यहां आकर झांकने की जरूरत नहीं समझी और सेट बैक ना छोडेÞ जाने पर क्यों नहीं निर्माण को रूकवा दिया। इसका मतलब तो यही माना जाएगा कि हमाम में सभी नंगे हैं।
कौन है वो दो नाम
जिनके नाम लेकर मेरठ विकास प्राधिकरण समत अन्य महकमों के अफसरों पर रौब गालिव पर यहां निर्माण कराने वाले अपना काम निकाल रहे हैं। जानकारों की मानें तो इनमें एक तो पूर्व आईएएस अफसर का नाम लिया जाता है जो रिटायर्ड होने के बाद भी सत्ता के शीर्ष पर बने हुए हैं। दूसरा नाम आरएसएस के किसी बडे पदाधिकारी का लिया जाता है।
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