
समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याघ, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध
मेरठ। समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याघ, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध! सदर दुर्गाबाड़ी स्थित प्राचीन जैन मंदिर को लेकर जो कुछ चल रहा है, यह कभी भी जैनसमाज की रिवायत नहीं रही है। हिन्दुओं में जैन समाज को सबसे ज्यादा शालीन और विनम्र माना जा रहा है, फिर ऐसा क्या हुआ जो सदर जैन समाज अपनी प्राचीन परंपराओं को बिसराए बैठा है। क्यों नहीं सदर जैन समाज के लोग आगे आना चाहते, मंदिर जी पर अवैध काविज जिन दो लोगों रंजीत जैन और मृदुल जै की वजह से मेरठ ही नहीं देश भर के जैन समाज के बीच सदर जैन समाज की पुलिस और कोर्ट कचहरी को लेकर चर्चा हो रही है क्यों उसको सदर जैन समाज के शालीन और विनम्र लोगों नियती मान ली है। जिस दो रंजीत जैन व मृदुल जैन की वजह से पूरे सदर जैन समाज की पुलिस व कोर्ट कचहरी को लेकर चर्चा हो रही है सदर जैन समाज उन्हें साइड लाइन कर क्यों नहीं नई शुरूआत करता। यदि दो लोग ही सारे फसाद की जड़ है जैसा की सदर जैन समाज के तमाम लाेगों का कहना भी है इन दोनों रंजीत जैन व मृदुल जैन को एक साइड कर मंदिर जी की करोड़ों रुपए की धन संपदा और इतनी ही कीमत के सोने चांदी मंदिर जी में वापस लाने की कानूनी लड़ाई लड़ रहे ऋषभ के सचिव डा. संजय जैन के साथ मिल बैठकर नई पहल करते। क्यों नहीं कानूनी तरीके से मंदिर जी की कमेटी के चुनाव की पहल की जाती। क्यों नही कोर्ट कचहरी के झगड़ों पर विराम की पहल की जाती।
डा. संजय जैन तो खुद इसके लिए तैयार बैठे हैं। उनका केवल इतना कहना है कि जो कुछ हो कानूनी तरीके से पारदर्शी तरीके से हो, पूरे सदर जैन समाज को साथ लेकर हो। डा. संजय जैन का खुद भी यह मानना है कि यदि रंजीत जैन व मृदुल जैन की वजह से सदर जैन समाज की देश भर के जैन समाज में चर्चा है तो इन दोनों को एक तरफ कर नई शुरूआत की जाए। उनका यह भी कहना है कि बातचीत के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले हैं। मंदिर जी की धन संपदा को वापस लाने के लिए वह सदर जैन समाज के सभी लोगों से बात करने व मिल बैठकर यह विवाद सुलझाने को तैयार हैं, लेकिन जो होगा वह होगा कानून व लोकतंत्र के दायरे में । महात्मा गांधी और दूसरे देश भक्तों ने जो लोकतंत्र हमे उपहार में दिया है, रंजीत जैन व मृदुल जैन सरीखे यदि उसकी हत्या करेंगे और हम चुप रहेंगे तो फिर कसूरवार हम भी कहलाएंग।
डा. संजय जैन अपनी बात के पक्ष में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता की लाइनें सुनाते हैं