मेरठ में शिक्षा का बेडा गर्क

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मेरठ: जिले के सरकारी विद्यालयों में सरकार द्वारा तमाम प्रयासों के बाद भी बदहाली से पीछा नहीं छूट रहा है। कहीं कमरों की कमी, कहीं शिक्षकों की कमी तो कहीं खेल मैदान का अभाव। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सरकारी विद्यालयों के लिए सपने जैसी बात है। जबकि स्कूलों की व्यवस्था सुधारने को लेकर जहां सरकार पैसा पानी की तरह बहा रही हैं। वहीं, दूसरी ओर सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही है।

कई स्कूलों में बच्चों को बैठाने व पढ़ाई की समुचित व्यवस्था नहीं है। ऐसी स्थिति किसी एक सरकारी स्कूल में नहीं है, बल्कि जिले के अधिकांश विद्यालयों में है। बच्चों की संख्या के अनुपात में क्लास रूम ही नहीं हैं और न ही बैठने के लिए बेंच। किसी तरह की कोई प्लान तैयारी नहीं होती है। जिले के प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों में दिन प्रतिदिन शिक्षा की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। सरकार द्वारा शिक्षकों के मानदेय एवं वेतन पर प्रतिमाह करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, बावजूद बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है। लोग इसके लिए सरकार व प्रशासनिक तंत्र को जिम्मेवार ठहरा रहे हैं।

बच्चों को शिक्षित करने के लिए जहां सरकार की ओर से सर्वशिक्षा अभियान सहित कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। वहीं, सरकारी स्कूलों में सुविधाओं का घोर अभाव है, जिससे विद्यार्थियों को शिक्षा हासिल करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कहीं शिक्षकों की कभी तो कई जगहों पर संसाधनों का अभाव है।

कैसे मिलेगी अच्छी शिक्षा जब स्कूलों मे चलने वाली कक्षाओं के लिए कमरे भी पूरे न हो? इसके साथ ही एक ही स्कूल में 415 छात्रों को पढ़ानें की जिम्मेदारी भी केवल एक ही शिक्षक निभा रहा है। यह शिक्षक भी अपनी आंखों की बीमारी से परेशान है।

गढ़ रोड स्थित अंबेडकर नगर के प्राथमिक विद्यालय में पहली से पांचवीं कक्षा में कुल 99 छात्र है। पहली कक्षा में 11, दूसरी में 20, तीसरी में 32, चौथी में 24 व पांचवीं में 12 छात्र है। यह स्कूल केवल तीन कमरों में चल रहा है, स्कूल में केवल तीन शिक्षक है जिनमें से एक शिक्षामित्र है। इनमें से भी एक शिक्षक ही स्कूल में पढ़ाती मिली। शिक्षिका ने बताया कि टीचरों की कमी के चलते बच्चों को पढ़ाना मुश्किल होता है।

कालियागढ़ी प्राथमिक विद्यालय का हाल भी जुदा नहीं है, पहली से पांचवीं तक की कक्षाओं में कुल 88 बच्चे हैं। पहली कक्षा में 11, दूसरी में 12, तीसरी में 26, चौथी में 19 व पांचवीं में 20 छात्र है। स्कूल में कुल दो कमरे है जहां पर सभी कक्षाओं के बच्चों को पढ़ाया जाता है। एक शिक्षक व एक ही शिक्षामित्र है। स्कूल की शिक्षिका नें बताया कि बच्चों को पढ़ानें से ज्यादा समय डाटा तैयार करने में बीत जाता है।

इसी तरह प्राथमिक विद्यालय माधोनगर का भी यही हाल है, यहां पर पहली कक्षा में 2, दूसरी में 4, तीसरी में 11,चौथी में 13 व पांचवीं में 15 बच्चे यानी कुल 45 छात्र है। इनको पढ़ानें के लिए दो शिक्षकों की नियुक्ति है। स्कूल में पांच कक्षाओं के बच्चे हैं, लेकिन कमरे केवल दो ही है। यहां पर जब से स्कूल बना है बिजली का कनेक्शन तक नहीं है।

प्राथमिक विद्यालय फतेहउल्लापुर में भी हालात खराब ही है, यहां पर पहली कक्षा में 64, दूसरी में 103, तीसरी में 177, चौथी में 113 व पांचवीं में 123 यानी कुल 580 छात्र है। इनती बड़ी संख्या में बच्चों को पढ़ानें के लिए केवल एक ही शिक्षक नियुक्त है। जबकि चार शिक्षामित्र भी है। इस स्कूल में कमरों की संख्या पूरी है, लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती है।

सबसे जुदा हालात उच्च माध्यमिक विद्यालय फतेहउल्लापुर के है, यहां पर छठी कक्षा में 107, सातवींं में 179 व आठवीं कक्षा में 141 यानी कुल 415 छात्र है, लेकिन इनको पढ़ाने के लिए केवल एक ही शिक्षक की नियुक्ति है। जिस शिक्षक को पढ़ाने के लिए स्कूल में रखा गया है उनकी आंखों में बीमारी है। जिस कारण वह ठीक से पढ़ाने में असमर्थ है। जिससे बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है।

एक साल पहले का समचार

सरकारी स्कूलों के बच्चों को अब पढ़ाई के लिए घर से बुलाना पड़ रहा है। इस सबंध में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने सभी स्कूलों के प्रधान अध्यापकों को जिम्मेदारी दी है। जिन स्कूलों में बच्चों की संख्या सबसे कम है, वहां के शिक्षकों से हर 15 दिन में रिपोर्ट तलब की जा रही है।

रजपुरा विद्यालय में मिली सबसे ज्यादा बच्चों की उपस्थिति

मेरठ के रजपुरा ब्लॉक के रजपुरा प्राथमिक विद्यालय में 221 छात्र छात्राएं हैं। इस स्कूल में जिले में सबसे अधिक बच्चों की उपस्थिति मिली हैं। जहां 70 से लेकर 85 प्रतिशत तक बच्चे उपस्थित रहते हैं। स्कूल की प्रधान अध्यापिका पुष्पा यादव ने बताया की जो बच्चे नहीं आते हैं उनके घर छुट्टी के बाद बच्चों को भेजा जाता है। खुद शिक्षक भी जाते हैं कि ताकि बच्चों को हर हाल में स्कूल लाया जाए।

कोरोना काल में प्रभावित हो चुकी है पढ़ाई

जिले में 910 प्राथिमक व 434 उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं। 98 विद्यालय कम्पोजिट कर दिए। बीएसए योगेंद्र कुमार का कहना है कि कोरोना काल में बच्चों की पढाई प्रभावित हो चुकी है। अब स्कूलों को लेकर यह निर्देश दिए हैं की इस सत्र में अधिक से अधिक पढ़ाई हो सके। बच्चों का स्कूल आना अनिवार्य रहे। बच्चों के परिवार के सदस्यों को भी यह अवगत कराया जा रहा है बच्चों को स्कूल जरूर भेजें। तत्कालीन

बीएसए योगेंद्र कुमार को लेकर जिले के सभी शिक्षकों में अफरा तफरी मची है। बीएसए खुद स्कूलों की चेकिंग रहे हैं। यदि शिक्षक एक एक मिनट भी लेट मिला तो बीएसए वेतन काट रहे हैं। पिछले 15 दिन में 98 शिक्षकों का वेतन काटा गया है।


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