मेरठ। बोल बम का जयकार लगाते ही दर्द खत्म हो जाता है। दिल्ली से अपने माता पिता के साथ कांवड़ लेकर जा रहे एक छोटे से भोले नितिन से जब कांवड़ यात्रा के दौरान पांव पड़े छालों को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा कि माता पिता के आर्शीबाद और बोल बम का जयकारा लगाते ही पांव के छालों का दर्द खत्म हो जात है। दिल्ली के सीलमपुर निवासी नितिन बताते हैं कि वह इस साल जोड़े की कांवड़ लेकर आए हैं। पिछले साल भी वह कांवड़ लेकर आए हैं। इसी प्रकार अगले साल भी क्या कांवड़ लेकर आने के सवाल पर वो कहते हैं कि भोले की पुकार और माता पिता का आर्शीबाद होगा ताे अवश्यक लाएंगे। उनना कहना है कि भोले की पुकार के बगैर कांवड़ यात्रा संभव ही नहीं है। जब तक भगवान शंकर का आदेश नहीं होगा, तब तक कोई भी कांवड़ नहीं ला सकता। केवल महादेव शंकर के आदेश पर कांवड़ पर कांवड़ ही नहीं बल्कि जो भी धर्म कर्म होता है, वो उस देव के आदेश के बगैर संभव नहीं होता है।
शर्वत, ठंड़ा पानी व लस्सी का सहारा
हरिद्वार से कांवड़ लेकर आ रहे बुलंदशहर के कांवड़िया गोपाल और उनके भाई नरेन्द्र बताते हैं कि अभी मंजिल काफी दूर है, लेकिन रास्ते में जो लोग शर्वत, ठंड़े पानी व लस्सी की सेवपा कर रहे हैं, उनकी इस सेवा से कांवड़ यात्रा को पूरा करने में बड़ा सहारा मिल रहा है। उन्होंने बताया कि जब हरिद्वार से यहां तक पहुंच गए हैं तो फिर बुलंदशहर तक भी पहुंच ही जाएंगे। उनका यह भी कहना है कि इस बार कांवड़ सेवा शिविरों की संंख्यों की बहुत कम है। कांवड़ियों के लिए सबसे बड़ी ऊर्जा है हर हर महादेव का जयकारा। यह जयघोष उनकी हर थकान को पल भर में दूर कर देता है।
धूप नहीं बनाती रूकावट, शिव नाम लेकर चलते जाना है
श्रद्धालुओं का कहना है कि धूप उनके लिए कोई रुकावट नहीं है। उनकी भक्ति ही उनके लिए ठंडी हवा का काम कर रही है। यह यात्रा उनके लिए केवल धूप में चलने का नहीं, बल्कि श्रद्धा में डूबने का पर्व है। शिव की आराधना में लीन श्रद्धालुओं के लिए गर्मी भी बाधा नहीं बन पा रही है। सावन के मौसम में कांवड़ यात्रा अपने चरम पर है। तपती दोपहरी और आसमान से बरसती आग के बीच भी श्रद्धालुओं की आस्था अडिग है। कांवड़ मार्ग पर श्रद्धालु पसीने से तरबतर होकर भी अपनी यात्रा जारी रखे हुए हैं। श्रद्धालुओं ने अपने बचाव के लिए विभिन्न तरीके अपनाए हैं। कुछ ने सिर पर गीला तौलिया रखा है। कुछ ने पैरों में पट्टी बांध रखी है।