नहीं कोई इंतजाम-लोग साइलेंट किलर के हवाले

नहीं कोई इंतजाम-लोग साइलेंट किलर के हवाले
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नहीं कोई इंतजाम-लोग साइलेंट किलर के हवाले,

एक्सप्रेस वे व हाइवे पर  ना बरती सावधानी तो जान पडे़गी गंवानी

-बहुत जरूरी हो तभी लेट नाइट जान जोखिम में डालकर करें कोहरे में सफर

-बाईपास के  हाइवे  व दिल्ल्ली एक्ससेस-वे  के ब्लैक स्पॉट बने हैं मौत के कटों से अफसर बेखबर

शेखर शर्मा

कोहरे का कोहराम व कहर जारी है।  लेट नाइट सफर करने वालों को इससे सुरक्षित रखने के लिए पुलिस प्रशासन की ओर से पुख्ता तो छोड़िये कोई सामान्य इंतजाम भी नहीं किया गया है। कोहरे के कहर से बचाने के बजाए लोगों को साइलेंट किलर के हवाले कर दिया गया है। कोहरे के कहर की यदि बात की जाए तो अब तक दो जाने जा चुकी हैं जबकि कोहरे के दौरान आपस में गाड़ियों के भिड़ने की वजह से घायल होने वालों का आंकड़ा सौ से ऊपर जा पहुंचा है। बीते चार दिनों से कोहरे का कहर जारी है, इस दौरान अब तक तीन दर्जन से ज्यादा गाड़ियां हाइवे व एक्सप्रेस वे समेत दूसरे इलाकों में भिड़ चुकी हैं। जहां तक पुलिस की बात है तो पुलिस वाले केवल उन मामलों को दर्ज करते हैं जिनमें किसी की मौत हो जाती है, गाड़ियों के भिड़ने सरीखे मामलों को दर्ज करने या उनकी लिखा पढ़ी करने में पुलिस वालों के स्तर से आमताैर पर कोतवाही बरती जाती है।

साइलेंट किलर के हवाले 

मेरठ दिल्ली एक्सप्रेस वे हो या फिर एनएच-58 देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेस वे। मेरठ के ये दो बड़े हाइवे हैं इसके अलावा बापगत रोड वाला सोनीपत पानीपत हाइवे। कोहरा का कहर शुरू होने के बाद से इन हाइवे पर लोगों को सुरक्षित रखने के बजाए पुलिस व प्रशासन तथा एनएचएआई का रवैया गाड़ियो को साइलेंट किलर के हवाले करना सरीखा है। पूरे हाइवे पर ऐसा कुछ इंतजाम नहीं किया गया है जिससे लगे कि कोहरे से सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया है। तमाम एजेन्सियां इस मामले में सर्द मौसम में कंबल में दुबकी नजर आती हैं। कोहरे में जब कोई गाड़ी साइलेंट किलर का शिकार होती है, तब एक दो दिन तो सुगबुगहाट दिखाई देती है, उसके बाद अलगे हादसे के इंतजार में फिर कंबल ओढ़ लिया जाता है।

नहीं है कोई इंतजाम

कोहरे के दौरान ज्यादातर हादसे एनएचएआई व पुलिस के हाथों छूट गयी खामियों के चलते होते हैं। एनएचएआई की यदि बात की जाए तो कोहरे के दौरान लोगों को सावधान करने के लिए कोई  इंतजाम नहीं किए गए हैं। हाइवे या एक्सप्रेस वे के नाम पर वाहनों से हर रोज भारी भरकम टोल टैक्स वसूलने वाली एजेन्सियों या ठेकेदारों को कोहरे में वाहनों को साइलेंट किलर से बचाने का कोई इंतजाम नहीं किया गया है। या हूं कहें कि लोगों को साइलेंट किलर के रहमों करम पर छोड़ दिया गया है।

ये है साइलेंट किलर

कोहरे के दौरान जिन्हें साइलेंट किलर गाड़ी चालक मानते हैं उनमें सबसे पहले नंबर पर हाइवे पर कोहरे के दौरान पर्यापत पथ प्रकाश व्यवस्था का ना किया जाना। घने कोहरे के दौरान हाइवे पर लाइट न होने के चलते अक्सर गाड़ियां भिड़ती हैं, खासकर वो गाड़ियां जिनकी हेड या बैक लाइटे कई बार खराब हो जाती हैं। कई बार कोहरा इतना ज्यादा घना होता है कि रोड पर चलते-चलते अचानक खड़े हो जाने वाले वाहनों का पहले से आभास या अंदाजा नहीं हो पाता है। रोड पर लाइट न होने के चलते जब हाइवे पर  खड़ा वाहन नजर आता है तब तक गाड़ी उससे जा टकराती है। एनएच-58 पर ऐसा कोहरे के दौरान लगातार हो रहा है। इसके अलावा कई बार ऐसा होता है कि रोड पर कोई वाहन खड़ा है और जो वाहन आ रहा है वो अचानक उसको देखकर खुद को बचाने के लिए कट मार देता है। इस दौरान कट मारने वाले वाहन के पीछे जो गाड़ियां आ रही होती हैं उनके चालक इससे पहले कि कुछ समझ पाते, पीछे आ रही तमाम गाड़ियां आपस में भिड़ जाती हैं। दो दिन पहले बाईपास के टीपीनगर वाले हिस्से में ऐसा हो चुका है। इसके अलावा सबसे ज्यादा खतरनाक हाइवे व एक्सप्रेस वे पर मौत के कट या कहें जिन्हें एनएचएआई की भाषा में ब्लैक स्पॉट कहा जाता है वो बने हुए हैं।

लेट नाइट कोहरे में जरा संभल कर

कोहरे के दौरान यदि लेट नाइट निकलने का प्लान है तो बेहद सावधानी बरती जाए। वर्ना लेने के देने पड़ सकते हैं। यहां बात विशेषज्ञों की नहीं बल्कि जो कोहरे के दौरान हादसों का शिकार हो चुके हैं उनकी की जाएगी। ऐसे लोगों की सलाह है कि कोहरे में ना निकले तो बेहतर है। यदि निकलना पड़ता है तो सबसे पहले रोड के बीचों-बीच जो सफेद लाइन या रिफ्लेक्टर होते हैं, उनके ऊपर गाड़ी रखें। इसके अलावा रोड के दोनों ओर जो सफेद लाइन होती है उस भी नजर रखी जाए। साथ ही आगे वाले वाहन से दूरी बनाकर चले यदि पीछे कोई वाहन काफी सट कर चल रहा है तो उसके टकराने का खतरा ज्यादा रहता है। ऐसे में बेहतर है कि या तो उसको आगे निकल जाने दें या फिर अपना वाहन रोड के एक साइड कर लें। सबसे ज्यादा ध्यान हाइवे के कट का रखा जाना चाहिए। यह भी ध्यान रखें कि कोई गाड़ी अचानक यूटर्न न ले ले। इसलिए दूरी बनाकर चलना बेहतर है। क्योंकि जिंदगी ना मिलेगी दोबारा।

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