अवैध कालोनी: जोन डी में 143 को ना

अवैध कालोनी: जोन डी में 143 को ना
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अवैध कालोनी: जोन डी में 143 को ना, मेरठ विकास प्राधिकरा का जोन डी गांव मुरलीपुर। ना कोई कायदा ना ही कोई कानून। नक्शा पास कराना तो दूर की बात भूमाफिया ने 143 कराने की भी जरूरत नहीं समझी। सीधे किसान से खेत लिया और अवैध कालोनी काटने का काम शुरू। जोन डी का पूरा इलाका इन दिनों  अवैध कालोनियों से लगातार आबाद होता जा रहा है। इस जोन में एक और अवैध कालोनी काट दी गयी है। एमडीए प्रशासन की  इस इलाके में अवैध कालोनियों के प्रति बजाए ध्वस्तीकरण के उदासीनता देखकर भूमाफिया अब गांव मुरलीपुर में भी  खुलकर खेलने पर उतारू हैं।  इस इलाके को अब तमाम भूमाफिया ध्वस्तीकरण के नजरिये से अब बेहद सुरक्षित इलाका समझने लगे हैं। शायद यही कारण है जो अब यहां भी अवैध  कालोनियाें का सिलसिला शुरू हो गया है इस बार अवैध कालोनी काटने का कारनाम करने में किसी अजय सैनी नाम के शख्स का नाम चर्चा में है। हालांकि यह शख्स कौन है इसकी जानकारी अभी गांव वालों के पास भी नहीं। इस कालोनी का नामकरण क्या किया गया है यह तो जानकारी नहीं मिल सकी है, लेकिन कालोनी काटने वाला अजय सैनी काम तेजी से करा रहा है।  वहीं दूसरी ओर महानगर क्षेत्र को अवैध निर्माण व कालोनियों से मुक्त कराने का दम भरने वाले एमडीए के अफसरों की हिम्मत नहीं हो पा रही कि एक बार दस एकड़ में काटी गयी  इस अवैध कालोनी के आसपास जाकर भी फटक आएं। इस कालोनी में अलग-अलग साइज के भूखंड काट दिए गए हैं। बाकि का काम भी काफी तेजी से चलता नजर आ रहा है।  यदि कोई काम रूका है वो बस मेरठ विकास प्राधिकरण प्रशासन की नींद टूटने का। इस संवाददाता ने जब पड़ताल की तो इलाके के लोगों ने बताया कि अजय सैनी ने यह कालोनी काटी। अजय सैनी कौन हैं इसका क्या बैक ग्रांउड हैं इसकी कोई खास जानकारी इलाके के लोग नहीं दे सके। उन्होंने केवल इतना भर बताया कि जब भी यह शख्स आता है इसके साथ कई अन्य लोग होते हैं। जो लोग इसके साथ होते हैं वो कौन हैं व उनका क्या बैक ग्राउंड हैं जब इसको लेकर आसपास के लोगों से पूछा गया तो उन्होंने सिर्फ इतना ही बताया कि इनमें कुछ लोगों तो अवैध कालोनियों के कारोबार से ही जुड़े लगते हैं। इसके अलावा अपराधिक प्रवृत्ति के प्रतीत होने वाले कुछ बाउंसर टाइप लोग भी उसके साथ देखे जा सकते हैं। लाेगों ने यह भी बताया कि काफी बड़े खेत में यह अवैध कालोनी काट दी गयी है। या यह भी संभव है कि कई खेतों को मिला दिया गया हो, क्यों कि इस अवैध कालोनी का क्षेत्र फल काफी विस्तृत हैं। किस किसान के खेत में यह अवैध कालोनी काट दी गयी है जब इसको लेकर सवाल किया तो लोगों ने अनभिज्ञता जाहिर की। उन्होंने बताया कि आमतौर पर अवैध कालोनी जिस भी किसान के खेत में काटी जाती है न जाने ऐसा क्या कारण है कि वो किसान फिर सार्वजनिक रूप से आमतौर पर नजर नहीं आता। इसके पीछे असली वजह क्या है यह बताता तो मुमकिन नहीं। जितने मुंह उतनी बातें होती हैं। कुछ का कहना है कि अवैध कालोनी के लिए किसान से उसका खेत लेने भूमाफिया भले ही वो कोई भी किसान को इस कदम मानसिक रूप से डरा देते हैं और कमजोर कर देते हैं कि वह चाह कर भी मुंह नहीं खोल पात। वह केवल उस वक्त को ही कोसता नजर आता है जब भूमाफिया पहली बार उससे मिला होता है। जब भी किसी किसान के खेत में अवैध कालोनी काटी जाती है तब तक कुछ ऐसा ही होता है। किसी भी किसान के लिए उसकी जमीन का  टुकड़ा परिवार का गुजर बसर करने का मुख्य साधन होता है। और वो मुख्य साधन ही यदि कोई भूमाफिया साम-दाम-दंड-भेद करन उससे छीन लेगा तो फिर किसान के पास कहने सुनने को कुछ भी नहीं रह जाएगा। जीवन भर के लिए पछताना उसका नसीब बन जाता है।

दोहरी मार किसान पर भूमाफिया की:

भूमाफिया किसानों पर दोहरी मार मारते हैं। पहली मार तो यह कि उसकी आजीविका का एक मात्र साधन उसका खेत छीन कर वहां कालोनी काट दी जाती है। बाउंसर लेकर घूमने वाले भूमाफियाओं के सामने मुंह खोलने की हिम्मत किसान नहीं कर पाते। मेरठ महानगर में जहां जहां अवैध कालोनी काटी जा रह हैं, प्रशासन यदि इन तमाम अवैध कालोनियों को लेकर जो सिंडिकेट काम कर रहा है उसकी गोपनीय जांच करा लें तो चौंकाने वाले खुलासे सामने आएंगे। कैसे किसानों को ये भूमाफिया बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। बर्बाद ऐसे किया जा रहा है कि एक तो किसान के परिवार का सहारा उनका खेत छीन लिया जाता है। वहां अवैध कालोनी काट दी जाती है। जिस खेत को भूमाफिया छीन लेते हैं उसकी रकम भी एक मुश्त नहीं दी जाती है। खेत में काटी गयी अवैध कालोनी के जैसे-जैसे भूखंड बिकते हैं उसके हिसाब से किसान को भूखंड की पेमेट से आना वाला एक छोटा सा भुगतान किया जाता है। पूरा भुगतान कभी भी भूमाफिया नही करता। भूमाफिया की मनोवृत्ति किसान को अपनी जूते के नीचे दवाए रखने की होती है। किसान से उसका खेत भी छीन लिय जाता है और पूरा एक मुश्त भुगतान भी रकम का नहीं किया जाता। ऐसे यह दोहरी मार किसान को मारते हैं।

एमडीए प्रशासन क्यों हैं चुप

जोन डी में भूमाफियाओं का किसानों के साथ जो रवैया है वो तो जग जाहिर है। लेकिन अवैध कालोनी के खिलाफ कार्रवाई के  नाम एमडीए का जोनल स्टाफ या जोनल स्टाफ के ऊपर बैठे अधिकारी क्यों नहीं एक्शन मोड में आ रहे हैं, यह भी एक बड़ा सवाल है। अजय सैनी नाम के किसी शख्स की बतायी जा रही इस अवैध कालोनी में जितने बड़े स्तर पर इन दिनों काम चल रहा है उसको देखते हुए तो यह लगता ही नहीं कि कालोनी अवैध रूप से काटी जा रही है। वहां साइट पर जो लोग मौजूद हैं जब उनसे बातचीत की तो उन्होंने दो टूक कहा कि एमडीए से डरने जैसी कोई बात नहीं। अधिकारियों से पूरी सेटिंग के बाद ही कालोनी का काम शुरू किया गया है। पूरे महानगर में जहां-जहां अवैध कालोनी काटी जा रही हैं तमाम कालोनियों में कालोनी काटने वाले बिल्डर सबसे पहला काम एमडीए को शीशे में उतारने का करते हैं। जब बातचीत तय हो जाती है मसलन क्या लेना देना हैं, यह फाइनल हो जाता है उसके बाद ही कालोनी की साइट पर काम शुरू किया जाता है।

वर्जन से भागता जोनल स्टाफ

एमडीए के जोन डी-फोर में जब अवैध कालोनी को लेकर जोनल अधिकारी अर्पित यादव व मनोज सिसोदिया से अजय सैनी की अवैध कालोनी पर कार्रवाई किए जाने को लेकर सवाल किया गया तो उनका रवैया सवाल से भागने का नजर आया। इस प्रकार के सवालों को लेकर बजाए एमडीए का पक्ष मीडिया के समक्ष मजबूती से रखने के जोनल स्टाफ सवालों से भागने में ही बेहतरी समझने लगे हैं।

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