अफसरों में जानकारी की कमी बढ़ा रही अदालतों का बोझ, फूड सेफ्टी के 99 फीसदी मामले बजाए निपटाने के भेजे जा रहे हैं अदालतों में, फूड सेफ्टी एक्ट की धारा 69 में शमन शुल्क जमा कराकर मुकदमा खत्म करने का है प्रावधान, अफसर बढ़ा रहे अदालतों का बोझ
मेरठ/ खाद्यान अफसरों को फूड एक्ट में दिए गए प्रावधानों की जानकारी का अभाव अदालतों का बोझ बढ़ा रहा है। यदि तमाम अफसर फूड एक्ट का अध्ययन कर लें तो अदालतों का बोझ तो कम होगा ही साथ ही विभाग को राजस्व मिलेगा और व्यापारी अदालत के चक्करों से निकल सकेगा। फूड एक्ट की धारा 69 में स्पष्ट प्रावधान दिया गया है कि खाद्य सुरक्षा एवं मानक से संबंधित प्रकरणों को शमन शुल्क लगाकर समाप्त किया जा सकता है, लेकिन फूड सेफ्टी अफसर ऐसा नहीं कर रहे हैं। उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष लोकेश अग्रवाल का कहना है कि 99 फीसदी ऐसे मामलों को अदालतों में भेजा जा रहा है। इससे अदालतों पर अनावश्यक बोझ पड़ रहा है और सबसे बड़ा नुकसान व्यापारी का हो रहा है, वो अपना व्यापार संभालने के बजाए वकीलों तथा अदालतों के ही चक्कर काटता रहता है। इसी को लेकर एक पत्र मुख्य कार्यकारी अधिकारी खाद्यान एवं मानक अधिनियम नई दिल्ली को भेजकर आग्रह किया गया है कि फूड सेफ्टी से जुड़े प्रदेश भर के अधिकारियों को इस संबंध में निर्देशित किया जाए। सूबे की सरकार को व्यापारी हितेषी माना जाता है, लेकिन फूड सेफ्टी अफसरों की कार्यप्रणाली आम व्यापारी में सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ाना का काम कर रही है।
त्यौहारों पर ज्यादा मारामारी
फूड सेफ्टी अफसर पूरे साल भले ही दफ्तरों से ना निकलें लेकिन जैसे ही कोई त्यौहार पास आता है उन्हें एकाएक अपनी ड्यूटी याद आ जाती है। शहर हो या देहात ताबड़तोड़ छापे शुरू कर दिए जाते हैं। सेंपलिंग की जाती है। सेंपल जांच के लिए भेजे जाते हैं और उसके बाद वो व्यापारी जिसके यहां से सेंपल लिए जाते हैं उसके अदालती चक्कर शुरू हो जाते हैं।
साल भर में 1500 सेंपल
मेरठ। फूड एंड सेफ्टी विभाग की टीम पूरे साल में करीब 15 सौ सेंपल लेती है जिन्हें जांच के लिए भेजा जाता है। फूड एंड सेफ्टी चीफ रवि शर्मा ने बताया कि अभी तक 840 सेंपल लिए गए हैं, साल पूरा होने तक यह संख्या दो गुनी हो जाएगी। जो सेंपल अभी तक लिए गए हैं उनमें से 230 कोर्ट में भेजे गए हैं। जब चीफ फूड सेफ्टी अफसर रवि शर्मा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि धारा 69 ऐसे मामलों में लगायी जाती है जिसमें कलर व कैमिकल की मिलावट की गई हो। ऐसे सभी मामले सीजेएम की कोर्ट में भेजे जाते हैं, इन मामले में तीन से छह साल तक की सजा का प्रावधान है।
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