झूठा शपथ पत्र देने वाले कंसल्टेंट को बचाने में लगा है प्रबंधन : पॉवर कारपोरेशन के अध्यक्ष पर गुमराह करने का आरोप: प्रांत भर में विरोध सभा और ज्ञापन दो अभियान जारी

मेरठ। विधायक अमित अग्रवाल से उम्मीद- विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने पावर कार्पोरेशन प्रबंधन पर झूठा शपथ पत्र देने वाले ट्रांजैक्शन कंसलटेंट को बचाने के लिए टालमटोल करने का आरोप लगाया है। संघर्ष समिति ने टेंडर मूल्यांकन समिति की बैठक तत्काल बुलाकर कंसल्टेंट की नियुक्ति रद्द करने की मांग की है।पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष पर निजीकरण के बाद बिजली कर्मचारियों की सेवा शर्तों में कोई बदलाव न होने के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष गुमराह कर रहे हैं। निजीकरण के बाद बिजली कर्मियों की बड़े पैमाने पर छटनी होगी। ज्ञापन दो अभियान पखवाड़ा के अंतर्गत आज प्रदेश में सांसदों, विधायकों और जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन दिए गए।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि कंसल्टेंट नियुक्त किए जाने वाले टेंडर के कॉन्ट्रैक्ट ऑफ द इंजीनियर ने फाइल पर यह साफ लिख दिया है कि कंसल्टेंट ग्रांट थॉर्टन को झूठा शपथ पत्र देने के मामले में दोषी पाया गया है। इसके बाद टेंडर मूल्यांकन समिति के अध्यक्ष और निदेशक वित्त ने फाइल पर यह लिखकर टाल दिया है कि टेंडर मूल्यांकन समिति की बैठक बुलाई जाए । बैठक की कोई तिथि नहीं लिखी गई है। यह सब टालमटोल है जो पॉवर कारपोरेशन के प्रबंधन की निजी घरानों के साथ मिली भगत का प्रमाण है। संघर्ष समिति ने कहा कि आश्चर्य की बात यह है की प्रदेश के 42 जनपदों के निजीकरण के पहले ही सारी प्रक्रिया में हो रहे इतने बड़े भ्रष्टाचार पर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री चुप्पी साधे हुए हैं। यह सब तब हो रहा है जब प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ जी की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति है।
संघर्ष समिति के मेरठ पदाधिकारियों इं सी पी सिंह (सेवानिवृत), इं कृष्ण कुमार साराश्वत, इं निशान्त त्यागी, इं प्रगति राजपूत, कपिल देव गौतम, जितेन्द्र कुमार, दीपक कश्यप, प्रदीप डोगरा, भूपेंद्र, कासिफ आदि ने कहा कि पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष यह स्पष्ट करें कि यदि निजीकरण के बाद सेवा शर्तों में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो हाल ही में चंडीगढ़ विद्युत विभाग के निजीकरण के पहले लगभग आधे बिजली कर्मियों को रिटायरमेंट लेने के लिए मजबूर क्यों किया गया।
संघर्ष समिति ने दिल्ली में निजीकरण के बाद बड़े पैमाने पर बिजली कर्मियों द्वारा रिटायरमेंट लेने के आंकड़े देते हुए कहा कि निजीकरण के बाद बिजली कर्मियों का भविष्य बर्बाद हो जाने वाला है। निजीकरण के पहले दिल्ली विद्युत बोर्ड में 18097 कर्मचारी कार्यरत थे। निजीकरण के एक वर्ष के अंदर-अंदर 8190 कर्मचारियों को रिटायरमेंट लेने के लिए मजबूर होना पड़ा, जो कुल संख्या का 45% है। रिलायंस द्वारा टेकओवर की गई एक कंपनी में 6953 कर्मचारी थे जिसमें एक वर्ष के अंदर 3807 कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद बाहर कर दिया गया । यह कुल संख्या का 55% है। रिलायंस द्वारा टेकओवर की गई दूसरी कंपनी में 5713 कर्मचारी कार्यरत थे। एक वर्ष के अंदर 2413 कर्मचारियों को रिटायरमेंट दे दिया गया जो कुल संख्या का 42% है। टाटा द्वारा टेकओवर की गई कंपनी में 5431 कर्मचारी कार्यरत थे। एक साल के अंदर अंदर 1970 कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति दे दी गई जो कुल संख्या का 36% है।
संघर्ष समिति ने कहा की दिल्ली विद्युत बोर्ड के निजीकरण के बाद कोई कर्मचारी सरप्लस नहीं था, तब इतने बड़े पैमाने पर सेवा निवृत्ति के नाम पर छटनी की गई। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के बाद लगभग 76000 कर्मचारी या तो निजी कंपनी के मातहत उनकी शर्तों पर काम करें अन्यथा अन्य वितरण निगमों में वापस आने के बाद वे सरप्लस हो जाएंगे और उन्हें घर भेज दिया जाएगा। इनमें से लगभग 50000 अत्यधिक अल्प वेतन भोगी संविदा कर्मियों की नौकरी जाना तय है। संघर्ष समिति ने कहा की पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष को यह बताना चाहिए कि निजीकरण के पहले सभी विद्युत वितरण निगमों में बड़े पैमाने पर लगभग 40% संविदा कर्मियों की छटनी क्यों की जा रही है। ज्ञापन दो अभियान के अंतर्गत आज जनपद मेरठ में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने शहर विधायक श्री अमित अग्रवाल जी को निजीकरण के विरोध में ज्ञापन दिया |
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