इंतजार कीजिए! आ सकती है मेडा की नीलामी की नौबत

kabir Sharma
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मेरठ/ आंतरिक विकास के नाम पर प्राइवेट बिल्डरों की कालोनियों पर गिद्ध दृष्टि रखने वाले मेरठ विकास प्राधिकरण के उच्च पदस्थ अफसरों को अपनी कालोनियों की बदहाली की सुध लेने की फुर्सत नहीं। प्राधिकरण की तमाम कालोनियां जिनमें प्रमुख रूप से शताब्दी नगर व वेदव्यासपुरी भी शामिल हैं। 1992 में विकसित की गयी शताब्दी नगर योजना के आवंटी आज भी दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। उन्हें आवंटित प्लाट कहां है या हवा में है या फिर है भी या नहीं। प्राधिकरा की साल 1995 की वेदव्यासपुरी योजना की यदि बात करें तो आवंटियों के प्लाट तो दूर की बात आंतरिक विकास की जब ग्राउंड रिपोर्ट की गयी तो मौके पर फसल लहलहाती मिली। आंतरिक विकास के दावों की पोल खोल रही हैं। इन कालोनियों के कई कई सैक्टर व पॉकेट सालों बाद भी आंतरिक विकास की बाट जोह रहे हैं। इन कालोनियों की यदि बात करे तो टूटी व क्षतिग्रस्त सड़कें, बदहाल पार्क और पार्कों में उगी ऊंची-ऊंची झाड़ियां और झाड़ियों में बैठे जहरीले सांप जे यदि दूर से भी फुंकार मार दें तो किसी के भी प्राण निकल जाएं। आंखें तरेक कर प्राइवेट बिल्डरों से बात करने वाले अफसरों को कभी भी प्राधिकरण की कालोनियों के पार्कों की बदहाली नजर नहीं आती। और यदि आतंरिक विकास के नाम पर कायदे कानून और कार्रवाई की ही बात करनी है तो फिर जिस कार्रवाई की बात प्राधिकरण प्रशासन प्राइवेट बिल्डरों पर कर रहा है, वही कायदे कानून खुद पर भी तो लागू करने की हिम्मत दिखाए। क्योंकि कानून खासतौर से रेरा की नजर में बिल्डरों या फिर प्राइवेट अफसर सभी बराबर हैं। तो फिर इस बात को प्राधिकरण के अफसर क्यों भूले बैठे हैं। या फिर यह मान लिया जाए कि प्राधिकरण के अफसर खुद को रेरा व योगी सरकार के कायदे कानूनों से ऊपर समझने लगे हैं।

Contents
-कालोनियों के आतंरिक विकास के नाम पर प्राइवेट बिल्डरों के प्लाट पर गिद्ध दृष्टि रखने व नीलामी की बात करने वाले मेडा, अफसरों को शताब्दीनगर व वेदव्यासपुरी की बदहाली देखने की फुर्सत नहीं, टूटी हुई सड़कें व डेमेज डिवाइडर खोल रहे हैं मेडा की कालोनियों की आंतरिक विकास की पोल, जमीन का किसानों से कब्जा लिए बगैर ही आवंटित किए गए प्लाटों में लहलहा रही है गेंहू की फसल, सुनियोजित विकास प्राधिकरण के साथ की बात करने वाले मेडा अफसरों को नजर नहीं आती अवैध डेयरियां, एनजीटी की सख्ती व लगातार फटकार के बाद भी वेद व्यासपुरी कालोनी में कूडा कचरा हटाए जाने की बजाए जलाया जाता, मेडा की कालोनियों में अनेक आवंटियों को अभी तक नहीं मिल सका कब्जा है कब्जा, अफसरों के चक्कर काट-काटकर बैठ गए थक करखुद पर कायदे कानून लागू करने से गुरेजखुद से शुरूआत करें प्राधिकरण अफसरइतनी पुरानी हैं ये कालोनियांऐसा कालोनियों का हालग्रीन यूपी क्लीन यूपी


यदि कायदे कानून की बात है तो वो तो सभी के लिए समान हैं। कानून व रेरा की नजर में प्राइवेट बिल्डर हों या फिर प्राधिकरण व आवास विकास परिषद अथवा हाउसिंग के किसी भी प्रोजेक्ट पर काम करने वाले कोई अन्य ऐजेंसी सभी बराबर माने जाते हैं।
प्राधिकरण के अफसरों ने जो कानून तय किए हैं उसमें कहा गया है कि यदि तय समय व सीमा में विकसित कालोनी का आंतरिक विकास का कार्य पूरा नहीं किया जाता तो बंधक प्लाट की नीलामी करके उक्त राशि से संबंधित कालोनी का विकास कार्य पूर्ण कराया जाएगा। प्राधिकरण अफसरों की यदि यह बात मान भी ली जाए तो यह कानून उन्हें खुद पर भी तो लागू करने चाहिए। कालोनियों में तय समय सीमा पर आंतरिक विकास की बात जब आती है तो सबसे ज्यादा कठघरे में प्राधिकरण के अफसर ही नजर आते हैं। प्राइवेट बिल्डरों व कालोनाइजरों पर आंतरिक विकास के नाम पर चाबुक चलाने वाले प्राधिकरण के उच्च पदस्थ अफसरों को कभी खुद भी गिरेवां में झांकना चाहिए। आतंरिक विकास के नाम पर आइने में झांकेंगे तो चेहरा दागदार ही नजर आएगा। आम पब्लिक चाहे प्राइवेट बिल्डर की कालोनी में प्लाट खरीदे या फिर प्राधिकरण अथवा आवास विकास की किसी कालोनी में भूखंड खरीदे, उस कालोनी का तय समय सीमा के भीतर आंतरिक विकास किए जाने का नियम कायदा बनाने वाले अफसरों का पहली फुर्सत में सबसे पहले वेद व्यासपुरी और शताब्दी नगर जाकर कम से कम अपनी इन दोनों कालोनियों की बदहाली तो देखनी चाहिए। बदहाली शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया है क्योंकि प्राधिकरण की इन दोनों कालोनियों से इतर बिल्डरों की प्राइवेट कालोनियों की हालत तो फिर भी बहुत अच्छी होती है। वहां तो खुद जो भी लोग प्लाट मकान खरीदते हैं कालोनी में छोटा भी काम होना होता है तो जाकर कालोनाइजर पर चढ़ाई कर देते हैं। लेकिन प्राधिकरण के सरकारी अफसरों पर उनकी कालोनियों की बदहाली व आंतरिक विकास के नाम पर कौन चढ़ाई करने की हिमाकत दिखाएगा। अगले ही पल में उसके खिलाफ सरकारी काम में बाधा डालने की एफआईआर और लगे हाथों सलाखों के पीछे भिजवाने का काम करने में एक पल की देरी नहीं लगाएंगे। इसलिए आतंरिक विकास बाट जो रही प्राधिकरण की कालोनियों में प्लाट व मकान लेने वाले आवंटी कभी अफसरों के सामने मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। लेकिन यदि आवंटी प्राधिकरण के अफसरों के खौफ के चलते मुंह नहीं खोल रहे हैं तो और अफसरों को प्राधिकरण की कालोनियों के आंतरिक विकास की चिंता तक नहीं तो फिर किस मुंह से यह अफसर प्राइवेट बिल्डरों को उनकी कालोनियों के आतरिक विकास के नाम पर बंधक बनाए गए प्लाटों को नीलाम करने की धमकियां दे रहे हैं। प्राधिकरण अफसरों के इस रवैये से शहर ही नहीं मेरठ में काम करने वाले तमाम बाहर के कालोनाइजर व बिल्डर भी खासे नाराज हैं। उनका साफ कहना है कि आम आदमी एक लिए अलग और प्राधिकरण के लिए अलग कानून स्वीकार्य नहीं है।


तमाम कालोनाइरों का साफ कहना है कि बेहतर तो यही होगा कि प्राधिकरण के अफसर खुद से शुरूआत करें। पहले वो अपनी कालोनियों के आंतरिक विकास की बात करें। अपने प्लाटों की नीलामी कराए। और यदि प्लाटों की नीलामी कराकर भी धनराशि संग्रह न हो सके तो फिर सिविल लाइन क्षेत्र स्थित मेरठ विकास प्राधिकरण के कार्यालय की नीलामी की निविदा सूचनाएं समाचार पत्रों में निकलवाए ताकि कोई भी नीलामी में बिल्डर मेरठ विकास प्राध्किरण की बिल्डिंग को खरीद ले और प्राधिकरण को अपनी बदहाल कालोनियों के आंतरिक विकास के लिए भी धनराशि मिल जाए। प्राधिकरण की बिल्डिंग की नीलामी कराने के बाद रकम जमा कराकर अपनी कालोनियों का आंतरिक विकास करने के बाद यदि प्राइवेट कालोनियों के अंतरिक विकास को लेकर कार्रवाई की बात की जाएगी तो फिर कोई भी प्राधिकरण के अफसरों पर सवाल की हिमाकत नहीं करेगा। यह भी सही है कि यदि किसी पर एक ऊंगली उठती है तो बाकि की उंगलियां खुद व खुद अपनी ओर उठ जाती हैं। यह कुदरत का कायदा है। इसलिए प्राइवेट बिल्डरों पर ऊंगली उठाने वाले अफसर यदि शुरूआत अपनी कालोनियों से करेंगे तो बेहतर संदेश जाएगा।


मेरठ विकास प्राधिकरण ने दिल्ली रोड स्थित शताब्दीनगर कालोनी को आवास विकास कालोनी को साल 1992 में विकसित किया गया था। इसी तर्ज पर हाइवे स्थित वेद व्यासपुरी कालोनी को प्राधिकरण ने विकासित किया था। ये दोनों कालोनियां प्राधिकरण के आंतरिक विकास की कलई उतारने को पर्याप्त हैं साथ ही इन दोनों कालोनियों की बदहाली का किस्सा सुनाकर प्राइवेट बिल्डर प्राधिकरण के अफसरों को आइना भी दिखा सकते हैं और सुनने में आया है कि ऐसा होने भी जा रहा है। सूत्रों की मानें तो प्राधिकरण जिन प्राइवेट कालोनाइजरों के बंधक प्लाटों पर गिद्ध दृष्टि रखे हैं उन्होंने प्राधिकरण की कालोनियों के आंतरिक विकास की पूरी कुंडली निकाल ली है। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि यदि जरूरत पड़ी और नौबत आयी तो कुछ प्राइवेट बिल्डर प्राधिकरण प्रशासन को उनकी कालोनियों की बदहाली का आइना दिखाकर आंतरिक विकास ना किए जाने पर उन्हें कोर्ट और रेरा तक में घसीटने पर अमादा हैं। पता चला है कि असल में बिल्डर इसको लेकर अपनी ओर से कोई पहल नहीं करना चाहते, लेकिन यदि पानी सिर से ऊपर गया तो प्राधिकरण को रेरा व कोर्ट में घसीटने से भी पीछे नहीं हटेंगे वो स्थिति प्राधिकरण के लिए बेहद दुश्कर होगी। क्योंकि यह बात सही है कि शताब्दी नगर व वेद व्यासपुरी सरीखी प्राधिकरण की कालोनियों में आंतरिक विकास की के बजाए अफसरों ने इनकी दुर्दशा कर डाली है। अफसरों को प्राइवेट कालोनियों में तो जाने की तो फुर्सत है लेकिन खुद की कालोनियों के आंतरिक विकास की सुध लेने की फुर्सत नहीं है। इसी लिए आने वाले दिनों में प्राधिकरण अफसरों को बड़ी फहीहत का सामना करना पड़ सकता है। जैसा कि सुनने मे आ रहा है यदि वाकई ऐसा हुआ और सच में प्राधिकरण की कालोनियों के आंतरिक विकास कराने के लिए धन की व्यवस्था के लिए मेरठ विकास प्राधिकरण की बिल्डिंग की नीलामी की नौबत आ गयी तो वो स्थिति बेहद दुखद होगी।


हाइवे स्थित प्राधिकरण की वेद व्यासपुरी कालोनी की यदि बात करें तो उसकी पोल इस कालोनी के पार्कों में आदम कद उगी झाड़ियां, टूटी उधड़ी हुई सड़कें, क्षतिग्रस्त नाले नालियां, बुरी तरह से डेमेज डिवाइडर जिस पर पेड़ लगाकर प्राधिकरण प्रशासन पानी तक देना भूल गया है। पेड़ों के नाम पर सूखे हुए ठुंठ खडेÞ हैं। हाइवे स्थित वेद व्यासपुरी पुलिस चौकी से जब कालोनी में एंट्री करते हैं तो सामने बनाया गया डिवाइडर आंतरिक विकास के दावों की पोल खोलने शुरू कर देता है। यहां सड़क के दोनों ओर उगी झांड़ियां यह बातने को काफी हैं कि काफी अरसे से साफ सफाई करने वाले यहां नहीं आए हैं। कुछ और आगे चले तो क्षतिग्रस्त डिवाइडर पर लोगों के अवैध कब्जे मिले। समीप ही एपेक्स ग्रुप की कालोनी से पहले कालोनी के भीतर एक अवैध डेयरी का संचालन नजर आया। अवैध इसलिए क्योंकि महानगर की सभी डेयरियां आबादी के बाहर कर दिए जाने का दावा अफसर कर चुके हैं। थोड़ा और आगे चलने पर स्कूल के समीप मेन रोड पर दशा बेहद खराब थी। किसी एक ब्लॉक नहीं पूरी कालोनी की यदि बात की जाए तो सड़कों, डिवाइडरों, नाले नालियों व उनकी सफाई तथा स्ट्रीट लाइट आदि की यदि बात करें तो आंतरिक विकास के नाम पर जिन चीजों की उम्मीद प्राधिकरण अफसर प्राइवेट कालोनाइजरों से उनकी कालोनियों में कर रहे हैं वो ना तो वेद व्यासपुरी में नजर आयी और कमोवेश यही स्थिति तो शताब्दी नगर की भी थी। वेद व्यासपुरी के पूठा स्थित आईओसी के डिपो के समीप तो कालोनी के बीच गेंहू की फसल लहलहा रही थी। उसके समीप सरकारी स्कूल मौजूद हैं। शताब्दी नगर की बात करें तो वहां पिंक बूथ पुलिस चौकी के समीप मेन रोड डिवाइडर पर डेयरी चलने वाले लोगों ने डिवाइडर का प्रयोग उपले पाथने में कर रहे हैं। वेदव्यासपुरी के पूठा में ही प्राथमिक विद्यालय सुंदरा के समीप एक प्लाट में गेंहू की फसल तैयार थी। इसी नीलकंठ हैवन्स के सामने डिवाइडर पर खत्ता बना दिया था। इसके आसपास की रोड बूुरी तरह क्षतिग्रस्त नजर आयी।


वेदव्यासपुरी में यूं कहने को तो प्राधिकरण ने ग्रीन यूपी क्लीन यूपी का साल 2014-15 में शुरू कराए गए सौन्दर्यीकरण का बोर्ड लगाया हुआ है लेकिन इसके आसपास की हालत प्राधिकरण की कारगुजारियों की पोल खोल रहा था। आसपास सूखे हुए पेड पौधे व फैली हुई गंदगी तथा टूटा हुआ डिवाइडर बता रहा था कि वेद व्यासपुरी से प्राधिकरण ने नाता तोड़ लिया है।
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